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१२२. पत्र: छगनलाल गांधीको

जोहानिसबर्ग

अक्टूबर १८, १९०५

चि० छगनलाल,

मुझे श्री किचिनका तार मिला है। वे चाहते हैं कि मैं यहाँसे ऐसे रवाना होऊँ जिससे कमसे कम रविवारको फीनिक्समें रह सकूँ। उनका कहना है कि उन्होंने पत्र भी भेजा है जो शायद कल शाम तक मिलेगा। मैं पत्र देख लेनेपर आने-न-आनेका निर्णय करूंगा। अगर आया तो शुक्रवारके सवेरे रवाना होकर वहाँ ' दोपहरको १ बजकर १६ मिनटपर पहुँचूँगा और १-२० पर फीनिक्सकी गाड़ी पकडूंगा। तुम स्टेशनपर आ जाना और मेरा टिकिट लेकर तैयार रहना। अपना टिकिट वापसी खरीद सकते हो। सोमवारको पहली गाड़ीसे मुझे फीनिक्ससे चल देना चाहिए। डर्बनके मुवक्किल कुड़कुड़ायेंगे; मगर क्या किया जाये ! तुम्हें मुझसे जो कुछ पूछना हो सब कागजपर लिख रखना, ताकि करने या कहनेकी कोई बात छूट न जाये। डर्बनमें लोगोंको खबर कर सकते हो कि मुझे सम्भवतः इस तरह लौटना है और उन्हें यह भी कहना कि सोमवारको कुछ घंटे छोड़कर उन्हें ज्यादा वक्त देना मुमकिन नहीं है। मेरे लिए अधिक रुकना गैर-मुमकिन है। मुझे कुछ और कहना जरूरी नहीं है। श्री वेस्ट और दूसरे लोगोंको सूचना दे देना।

तुम्हारा शुभचिन्तक

मो० क० गांधी

श्री छगनलाल खुशालचन्द गांधी
मारफत इंडियन ओपिनियन
फीनिक्स

मूल अंग्रेजीकी फोटो-नकल (एस० एन० ४२५९) से।

१२३. परवानेका एक और मामला

श्री दादा उस्मान १५ वर्ष या इससे भी अधिक समयसे नेटालमें रहते हैं। वे जमीनके भी मालिक हैं और गणतन्त्र राज्यके जमानेमें एक सामान्य व्यापारीकी हैसियतसे फ्राईहीडमें आकर बसे थे। युद्ध छिड़नेतक तो उन्हें फ्राईहीडमें बिना किसी रोक-टोकके व्यापार करने दिया गया, परन्तु अब, तीन वर्षसे अधिक समय तक ब्रिटिश सत्ताके साथ अकेले संघर्ष करनेके बाद वे अपने-आपको विनाशके समीप खड़ा पाते है। और खुबी यह है कि दादा उस्मान ब्रिटिश प्रजा हैं! यदि कोई विदेशी यह पूछे कि किसी ब्रिटिश प्रजाजनके विरुद्ध, अपराधी न होते हुए भी उसको नागरिक अधिकारोंसे वंचित करनेके उद्देश्यसे, ब्रिटिश शासन-तन्त्रका प्रयोग क्यों १. डर्बन ।

२.देखिये खण्ड ३, पृष्ठ १८ ।