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१२१. सर हेनरी लॉरेंस

इस महान पुरुषका जन्म श्रीलंकामें १८०६ के जूनकी २८ तारीखको हुआ था। वह मथुरा[१] शहरमें जन्मा था, इसलिए उसकी माँने विनोदमें उसका नाम “ मथुराका रत्न रख दिया और वह सचमुच हीरा ही निकला। सन् १८२३ में वह कलकत्ता आया और बंगाल तोपची पल्टनमें नौकर हो गया। उसको जिम्मेवारीका पहला काम बर्माकी पहली लड़ाई[२] में दिया गया। इस लड़ाईमें अपना कर्त्तव्य पूरा करते-करते वह बीमार पड़ गया और उसे विलायत जाना पड़ा । वहाँ उसने अपना समय खेल-कूदमें नष्ट करनेके बजाय अध्ययनमें बिताया। सन् १८३० में वह दुबारा भारतमें आया और अपनी पल्टनमें शामिल हो गया। उस समय उसने हिन्दुस्तानी और फारसीका अध्ययन किया। वह अपना निजी समय एकान्तमें बिताता। इसका एक कारण यह था कि वह अपनी माँ के लिए यथासम्भव रुपया बचाना चाहता था। उसको इस बार बहुत बड़ी जिम्मेदारीका काम दिया गया। उसने इसमें अपनी बीमारीके समय इंग्लैंडमें जो कुछ सीखा था उसका पूरा उपयोग किया। उसको पश्चिमोत्तर सीमाप्रान्तमें लोगोंपर कर लगानेके सम्बन्धमें सर्वेक्षणका काम सौंपा गया। लॉरेंसके असली गुण इस समय प्रकाशमें आये। वह सैनिक था, फिर भी उसका हृदय बड़ा कोमल और दयालु था। उसे सर्वेक्षणका काम करते हुए गरीब लोगोंके सम्पर्क में आनेका मौका मिला। इससे वह वहाँके लोगोंकी भावना और रस्म- रिवाजोंको समझ सका। वह लोगोंके साथ समानताका भाव रखकर मिलता-जुलता था। वह स्वयं अत्यन्त परिश्रमी और बड़े जीवटका व्यक्ति था; इसलिए उसके मातहतोंमें जो लोग आलसी थे वे उससे द्वेष करते थे। जो आदमी काम न करता उसपर सख्ती करने में वह हिचकिचाता नहीं था। एक बार एक सर्वेक्षकने एक बड़ी भूल की । उस भूलको सुधारनेके लिए लॉरेन्सने उसको वहाँ दुबारा जानेका आदेश दिया। उसे जहाँ जाना था वह स्थान दस मील दूर था, इसलिए उसने वहाँ जाने में आनाकानी की। तब लॉरेंसने उसे डोलीमें बैठाकर भिजवाया। किन्तु वह व्यक्ति जिद्दी था इसलिए इतना होनेपर भी उसने काम करनेसे इनकार कर दिया। तब लॉरेंसने उसको एक आमके पेड़पर बिठा दिया और नीचे नँगी तलवारें देकर दो पहरेदार खड़े कर दिये। सर्वे- क्षक जब भूख और प्याससे व्याकुल हो गया तब उसने लॉरेंस साहबसे क्षमा माँगते हुए काम करना मंजूर किया और नीचे उतरनेकी अनुमति मांगी। इसके बाद वह सुधर गया और लॉरेंसकी मातहतीमें बहुत अच्छा काम करने लगा।

हम लोगोंने सुना है कि पुराने जमानेमें भाई-भाईके लिए, मित्र-मित्रके लिए, माँ-बेटेके लिए, बेटा माँ-बापके लिए और स्त्री पुरुषके लिए प्राण देनेको तैयार रहते थे। वही लॉरेंसने इस जमानेमें करके बताया है। अफगानिस्तानकी लड़ाईमें उसका बड़ा भाई गिरफ्तार हो गया। अफगान सरदारने उसको कुछ दिनकी छुट्टी दी। छुट्टी पूरी होनेपर वह लौटकर जानेके लिए बँधा था। भाईकी सेवाएँ अधिक उपयोगी हैं, ऐसा सोचकर लॉरेंसने उसके बदले खुद जेलमें जानेका प्रस्ताव किया। यह उसके भाईने स्वीकार नहीं किया; परन्तु लॉरेंस जो कह चुका था वह करके रहा। १. श्रीलंकाके दक्षिण तटपर एक बन्दरगाह।

२.१८२४-६ ।

  1. १.
  2. २.