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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

उन्होंने अपने श्रोताओंको पुराने बसे हुए भारतीयोंके साथ उचित व्यवहार करनेकी आवश्यकता समझाई। अब, भारतीय व्यापारी अपनी विश्वसनीय मुंशियों, प्रबन्धकों और अन्य विश्वासी कर्मचारियोंकी आवश्यकताकी पूर्ति भारतसे ही कर सकते हैं, इस सचाईका विश्वास करवाने के लिए इसका जिक्र भर कर देना काफी है। इन सुविधाओंके बिना, उनके लिए सुरक्षापूर्वक व्यापार चलाते रहना प्रायः असम्भव है। तो क्या हम यह समझें कि जबतक ट्रान्सवालकी भावी संसद दूसरा निर्णय नहीं कर देती तबतक भारतीय व्यापारको, विश्वासी आदमियोंके अभावमें संकटग्रस्त रख, घुटने टेक देनेके लिए विवश किया जायेगा?

परमश्रेष्ठने यह भी कहा है कि भारतीयोंको गोरोंके साथ अनियंत्रित प्रतिस्पर्धा करते चले जाने देना व्यावहारिक राजनीतिज्ञताकी बात नहीं है। हमने इस प्रस्तावपर इस पत्रमें बहुधा विचार किया है, और हम समझते हैं कि हम इसका खोखलापन दिखला चुके हैं। इसमें जो कुछ सत्य है उसे भारतीय मान चुके हैं, और जो सत्य नहीं है, उसका एकमात्र कारण व्यापारिक ईर्ष्या है। यह स्पष्ट कर दिये जानेके बाद, कि नये परवाने देनेका अधिकार, उचित संरक्षणोंके साथ, प्रधानतया व्यापारियों द्वारा गठित स्थानीय निकायोंको ही होगा, भारतीय स्थितिका औचित्य अत्यन्त विद्वेषी व्यक्तियोंके अतिरिक्त, सबको स्पष्ट हो जाना चाहिए। परन्तु वे एशियाई-विरोधी लोग, जो एक-एक भारतीयको इस उपनिवेशसे निकाल बाहर करने पर तुले हुए हैं, तबतक सन्तुष्ट नहीं होंगे जबतक उन्हें भारतीयोंका जीवन बिलकुल असह्य बनानेमें सफलता नहीं मिल जायेगी। लॉर्ड सेल्बोर्नसे इस प्रकारके प्रयत्नोंके विरुद्ध अपनी रक्षाकी आशा करना भारतीयोंका अधिकार है।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, १४-१०-१९०५

११८. लॉर्ड सेल्बोर्नका आगमन

सप्ताहका अधिकांश नेटालमें व्यतीत करनेके बाद लॉर्ड सेल्बोर्न आज डर्बन पहुँच रहे हैं। ब्रिटिश भारतीय समाजके अन्य सदस्योंके साथ-साथ हम अत्यन्त विनम्र भावसे उनका नम्रतापूर्वक स्वागत करते हैं। लॉर्ड सेल्बोर्नको दक्षिण आफ्रिकामें आये थोड़ा ही समय हुआ है। परन्तु उनको अभीसे सभी श्रेणियोंके लोगोंका यह विश्वास प्राप्त हो गया है कि वे बिना किसी भय या मुलाहिजेके प्रत्येक व्यक्तिके प्रति अपना कर्तव्य निभायेंगे। परमश्रेष्ठ अनेक प्रकारसे नेटालको अन्य ब्रिटिश उपनिवेशोंसे भिन्न पायेंगे। नेटालमें अध्ययनके लिए कुछ मनोरंजक समस्याएँ उपस्थित है। इसका कारण यह है कि उसमें बतनी लोगोंकी बड़ी आबादी है और गोरे लोग अपेक्षाकृत बहुत कम संख्यामें हैं, जो अपने मुख्य उद्योग-धंधोंके लिए भारतीय गिरमिटियोंकी बहुत बड़ी आबादीपर निर्भर हैं। इन गिरमिटिया भारतीयोंकी उपस्थितिने स्वभावतः व्यापारी वर्गके भारतीयोंको इस उपनिवेशमें आकर्षित किया है। हमारा विश्वास है कि लॉर्ड सेल्बोर्न अपने अल्पकालिक प्रवासमें अपने बहुमूल्य समयके कुछ क्षण उन नेटालवासी ब्रिटिश भारतीयोंको समझने में लगायेंगे, जो सभीकी रायमें सम्राटकी प्रजाके सर्वाधिक राजभक्त और कानूनका पालन १. स्पष्टतः, भूलसे “ ट्रान्सवाल" के स्थानपर "नेटाल" लिखा गया है। लॉर्ड सेल्बोर्नने ट्रान्सवालके भ्रमणमें इस सप्ताहका प्रारंभिक भाग व्यतीत किया था। देखिए पिछला शीर्षक ।