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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

देखे। मुझे मालूम हुआ कि सारा कूड़ा रोजाना ठेकेदार ले जाया करता है। शहरके दूसरे हिस्सोंके समान यहाँ बालटी-पद्धति काममें लायी जाती है। इसकी भी कमाईका प्रबन्ध है, जो सफाई विभाग द्वारा किया जाता है। मैंने जो-कुछ देखा उसमें मैं कोई दोष नहीं बता सकता। जहाँतक सोनेके स्थानकी बात है, मुझे कोई भीड़-भाड़ दिखलाई नहीं पड़ती। प्रत्येक व्यापार-स्थानके पीछे, उससे अलग, मैंने एक प्रकारका भोजनगृह-सा देखा, जिसमें ५ से ८ आदमियों तक के बैठनेका स्थान है और हरएकमें उसका रसोईघर है। ये सब भी साफ-सुथरे रखे जाते हैं।

हमने इन बातोंका जिक्र यह दिखानेके लिए किया है कि हमें कैसी विपरीत परिस्थि- तियोंका सामना करना पड़ रहा है, और हमारे विरुद्ध कैसी-कैसी गलत बातें कही जाती हैं। हम निःसंकोच कह सकते है कि इस सारे एशियाई-विरोधी आन्दोलनका कारण व्यापारिक ईर्ष्या है। गोरे दूकानदारोंके साथ अनुचित प्रतिस्पर्धामें उतरनेकी हमारी तनिक भी इच्छा नहीं है।

हमारे रहन-सहनके तरीकोंके विरुद्ध बहुत-कुछ कहा गया है। हमें इस बातका अभिमान है कि हमारी आदतें सीधी-सादी और संयत हैं, और यदि उनके कारण हमें प्रतिस्पर्धी गोरे व्यापारियोंकी तुलनामें कोई लाभ हो जाता है तो हम किसी प्रकार यह नहीं समझ सकते कि हमारी निन्दा करने और हमें गिरानेके लिए उसका उपयोग हमारे विरुद्ध क्यों किया जाता है। जो लोग हमारी निन्दा करते हैं वे इस प्रसंगमें यह बिलकुल भूल जाते हैं कि गोरे व्यापारियोंको अनेक ऐसे लाभ होते है जिनको हम स्वप्नमें भी प्राप्त नहीं कर सकते। उदा- हरणार्थ, यूरोपीयोंके साथ उनके सम्बन्ध, उनकी अंग्रेजी भाषाकी जानकारी और उनकी अच्छी संगठन-शक्ति। इसके अतिरिक्त, हम अपना व्यापार, केवल इस कारण कर सकते हैं कि गरीब गोरोंकी हमारे प्रति सद्भावना है और हम गरीबसे गरीब ग्राहकोंको सन्तुष्ट कर सकते हैं। हमें थोकफरोश यूरोपीय व्यापारियोंकी सहायता भी प्राप्त है। कहा गया है कि हमारे मुका- बलेके कारण बहुत-सी यूरोपीय दूकानें बन्द हो गई। हम इसका खण्डन करते हैं। पहली बात तो यह है कि जो दूकानें बन्द हुई हैं उनमें से कई ऐसी थीं कि उनसे सम्भवतः हमारी स्पर्धा हो ही नहीं सकती थी; जैसे कि नाइयोंकी दूकानें आदि। कुछ साधारण माल बेचनेवाली दूकानें भी अवश्य बन्द हुई है, परन्तु उनके बन्द होनेका सम्बन्ध एशियाई मुकाबलेके साथ जोड़ना वैसा ही अनुचित है जैसा कि इस शहरमें कुछ एशियाई दूकानोंके बन्द होनेका सम्बन्ध यूरोपीय मुकाबलेके साथ जोड़ना। इस समय सारे दक्षिण आफ्रिकामें व्यापारिक मन्दी है, और इसका फल यह हुआ है कि युद्धके तुरन्त पश्चात् आवश्यकतासे अधिक जो व्यापार शुरू कर दिये गये थे वे समाप्त हो गये, क्योंकि उन्हें भारी अपेक्षाओंके आधारपर शुरू किया गया था, जो कभी पूरी नहीं हुई।

क्या हम यह निवेदन कर सकते हैं कि हमारे विरुद्ध बहुत-सा आन्दोलन असली ब्रिटिश प्रजाजनों द्वारा नहीं किया जा रहा, प्रत्युत उन विदेशियों द्वारा किया जा रहा है जिन्हें वस्तुतः हमसे बहुत कम शिकायत हो सकती है। हमको नगरसे निकालनेके लिए जो नीति अपनाई गई है वह संताप और अपमानोंकी नीति है, जो तुच्छ होनेपर भी इतने कटु हैं कि हम उन्हें बहुत ज्यादा महसूस करते हैं।

डाकघरोंमें तनिक भी कारणके बिना हमारे लिए पृथक् खिड़कियाँ नियत कर दी गई हैं। जिस उद्यानको “सार्वजनिक" उद्यान कहा जाता है और जिसकी सार-सँभाल अन्य नाग- रिकोंके साथ-साथ हमसे भी वसूल किये गये करोंसे की जाती है, उसकी खुली हवामें साँसतक