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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

भारी रियायतका बरताव किया है। जैसा कि पाठकोंको इन स्तम्भोंसे ज्ञात हो गया होगा, इन लोगोंसे इनकी भूमि नहीं ली जायेगी। इतना ही नहीं, बल्कि उनकी मासिक किरायेदारी लम्बे पट्टोंमें बदल दी जायेगी। यही सुविधा मलायी बस्तीके निवासियोंको भी क्यों नहीं दी जानी चाहिए? इन लोगोंको चाहिए कि ये अपने अधिकारोंकी उचित रक्षाका प्रयत्न करें। जिन कानूनोंको निर्विवाद बताया जा रहा है उनके ये केवल कुछ उदाहरण हैं। इनके द्वारा किसी-न-किसी रूपमें रंगदार लोगोंके अधिकारोंपर प्रहार किया गया है; और उनको अपनी सरकारके चुनावका कोई अधिकार नहीं है।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, ३०-९-१९०५

९८. केप प्रवासी-प्रतिबन्धक अधिनियम

केपके १९ सितम्बर १९०५ के 'गवर्नमेंट गज़ट' में यह प्रकाशित हुआ है :

किसी "निषिद्ध प्रवासी'को, अधिनियमका उल्लंघन करके उपनिवेशमें आजानकी अवस्थामें, जिस जिलेमें वह मिला हो उसके मजिस्ट्रेट द्वारा तथ्योंकी आवश्यक जाँचके पश्चात् , उपनिवेशकी प्रादेशिक सीमाओंमें से निकाल देने तक, उस स्थानमें रोक लेने और रखनेको आज्ञा देना कानूनकी दृष्टिसे उचित होगा जिसका निर्देश समय-समयपर मन्त्री करे। और उचित साधन सम्पन्न होनेपर उसको मन्त्री द्वारा निर्दिष्ट बन्दरगाह या स्थानमें भेजनेका पूरा या आंशिक व्यय उसीसे लिया जायेगा।

यह नियम बहुत कठोर है। प्रतिबन्धक अधिनियम यह मानकर पास किया गया है कि वह उपनिवेशके हितमें है। यह सर्वथा कल्पनागम्य है कि कोई आदमी अनजाने इस अधिनियमका उल्लंघन करके उपनिवेशमें आ जाये। तब यदि उसके पास वहाँसे जानेका खर्च देनेके लायक पर्याप्त रकम पाई जाये तो उसको उसका भार उठाने के लिए विवश करना उचित नहीं होगा। यद्यपि सिद्धान्ततः, कानूनसे अनजान होना दण्डसे बचनेके लिए उचित तर्क नहीं माना जाता, परन्तु शायद व्यवहार में ऐसे मामले आ जाते हैं जिनमें वह उचित तर्क मान लिया जाता है। इस अधिनियममें पहलेसे ही इस आशयकी एक धारा मौजूद है कि जहाजोंके सब मालिक निषिद्ध प्रवासियोंको वापस ले जानेकी शर्तपर ला सकते हैं। यदि कोई निषिद्ध प्रवासी उप- निवेशमें प्रविष्ट हो जाता है तो इससे अधिकारियोंकी ओरसे निगरानीकी कभी सिद्ध होती है; और केपमें पूरी-पूरी निगरानी न होने अथवा यात्रियोंके चुनावमें जहाजोंके मालिकोंकी लापरवाहीके कारण किसी निरपराध व्यक्तिको दण्डित करना उचित नहीं जान पड़ता। इस कारण हमारा विश्वास है कि केपके ब्रिटिश भारतीय, जिनपर इस अधिनियमका प्रभाव सबसे अधिक पड़नेकी सम्भावना है, इसमें संशोधन करानेका आवश्यक प्रयत्न करेंगे।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, ३०-९-१९०५