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पत्र: छगनलाल गांधीको
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तुमने चि० मणिलालका समय-विभाजन ठीक रखा है। उसकी रुचि खेतीमें है तो उसको घरके आसपास काम करनेके लिए कहना। मुख्य बात तो है जमीनके उस बड़े टुकड़ेको साफ करनेकी और उसमें पानी देनेकी। वह पेड़ोंपर ध्यान रखेगा तो उसे अपने-आप विशेष बातें मालूम हो जायेंगी। वह क्या पढ़ता है ? मैं उसे अंग्रेजीमें कम्पोज करनेके लिए लिखूगा। वह गुजरातीमें भी प्रशिक्षण ले तो अच्छा होगा।

मुझे तुम्हारा मन कुछ कमजोर होता दिखता है। वास्तवमें कुछ महीने तुम्हारा यहीं रहना जरूरी है। लेकिन वह संभव नहीं दिखता। तुम छापेखानेमें रहनेके लिए कृतसंकल्प हो, इतना काफी नहीं है। मैंने तुमको दो और दो चारकी तरह असंदिग्ध रूपमें बता दिया है कि छापा- खाना बन्द नहीं होगा। तुमने तब सहमति प्रकट की थी और अब लिखते हो कि परिस्थितियाँ दुस्सह और अनिश्चित हैं। मैं इसीको निर्बलताका चिह्न समझता हूँ। छापेखानेमें क्या है, तुम्हारा अपना कर्तव्य क्या है और लोगोंको किस तरह सँभाला जावे, इसका विचार तुम नहीं कर सके। उसके लिए तुम्हें अवकाश नहीं मिला। और विपरीत परिस्थितियोंके कारण तुम्हारी निर्बलता प्रकट हुई है। ऐसा होना भी मैं अच्छा समझता हूँ। लेकिन तुम स्वयं उसका तात्पर्य समझ सको तभी वह अच्छा है। यह सब मै पत्र द्वारा नहीं समझा सकता। सिर्फ इतना ही लिखता हूँ कि (१) जबतक एक भी मनुष्यकी अनन्य भक्ति होगी, तबतक छापाखाना टूट नहीं सकता। (२) तुम्हारे और दूसरोंके लिए मैं छापेखानेके सिवा दूसरे किसी कामको अनुकूल नहीं समझता। (३) मनुष्य कितना ही तीखे मिजाज़का हो, फिर भी यदि हम उसकी ओर मन, वचन और कायासे निर्मल प्रेम रख सकें तो वह तुरंत ठिकानेपर आये बिना नहीं रहेगा। (४) लेकिन वह ठिकानेपर आये या न आये, हमारा कर्त्तव्य यही है कि हम निश्चित होकर एक ही दिशामें चलते रहें। मैं मानता हूँ कि तुम हेमचन्दको सिखा लो और चिंताओंसे कुछ छूट जाओ तो बहुत अच्छा हो। मैं यह चाहता भी हूँ।

मोहनदासके आशीर्वाद

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजरातीको फोटो-नकल (एस० एन० ४२५२) से।

९६. पत्र: छगनलाल गांधीको

जोहानिसबर्ग

सितम्बर २९,१९०५

चि० छगनलाल,

ऑर्चर्डने मुझे लिखा है कि तुमने रामको एक किताबकी जिल्द बाँधनेका ऑर्डर सीधा दे दिया और उनकी शिकायत है कि अगर वे फ़ोरमैन हैं तो यह अनियमित था। वे यह भी कहते हैं कि किताबकी जिल्द अच्छी नहीं बाँधी गई है। मैंने उनको लिखा है कि अगर तुमने ऐसा किया है और ऑर्डर सीधा दिया है तो यह अनियमित है; मगर इसमें सम्भवतः तुम्हारा इरादा उन्हें नाराज़ करनेका या नियम तोड़नेका नहीं हो सकता। मैंने उनसे यह भी कहा है कि वे तुमसे आमने-सामने बातचीत कर लें। इसलिए मैं चाहता हूँ कि तुम उनसे बातें कर लो और मामला क्या है, यह मुझे भी सूचित करो। यह बात बिल्कुल ठीक है कि ऑर्डर