उनका तीसरा वक्तव्य भारतीयोंके बड़ी संख्यामें नेटालसे पॉचेफस्ट्रम आनेके बारेमें है। जिन्होंने यह वक्तव्य दिया है वे कुछ भी नहीं जानते कि नेटालमें गिरमिटिया मजदूरोंसे सम्बन्धित कानून किस तरह लागू किया जाता है, और फिर भी इस आशयका वक्तव्य दिया गया है कि पाँचेफस्ट्रममें जो लोग बड़ी संख्यामें आये हैं वे इसी वर्गके हैं। जहाँतक मेरे संघको मालूम है, भारतीय-विरोधियोंने जो बहुत-से वक्तव्य दिये हैं, उन्हें सिद्ध करने योग्य कोई प्रमाण देनेमें वे अभीतक सफल नहीं हुए। और सबसे बड़ी बात, जिसपर उन्होंने कभी ध्यान ही नहीं दिया, यह है कि युद्धसे पहले जोहानिसबर्गमें ही सबसे ज्यादा भारतीय रहते थे, और जोहानिसबर्गसे ही वे उपनिवेशके दूसरे हिस्सोंमें फैले हैं। जहाँतक भारतीयोंका सम्बन्ध है, युद्धसे पहले जोहानिसबर्गका व्यापार, चूंकि डच और वतनियोंके हाथमें था, बहुत ही अच्छा था। लेकिन आज डच और वतनी दोनोंका व्यापार बहुत बुरी हालतमें है। इसका नतीजा यह हुआ है कि जिन व्यापारियोंके लिए ट्रान्सवालमें अपनी जीविका चलाना असम्भव हो गया था वे अब ट्रान्सवालके दूसरे हिस्सोंमें जा बसे हैं। जोहानिसबर्गकी बस्ती बहुत-से भारतीय जमींदारोंका अवलम्ब थी। ये लोग न केवल निर्धन बना दिये गये हैं बल्कि इन्हें जोहानिस- वर्ग छोड़कर उपनिवेशके दूसरे हिस्सोंमें जानेपर मजबूर किया गया है। यदि जोहानिसबर्गको हालत पहले जैसी हो जाये, और ब्रिटिश भारतीयोंको युद्धके पहले जमीनकी मिल्कियतके बारेमें जो संरक्षण प्राप्त था उसका फिरसे आश्वासन मिल जाये, तो जो भारतीय आबादी उपनिवेशमें इधर-उधर फैल गई है, वह सब जोहानिसबर्ग में आ जायेगी और भारतीय-विरोधी लोगोंको यह जानकर सन्तोष होगा कि बहुत-से नगर भारतीय-विहीन हो गये हैं।
इस बयानमें जो कुछ भी कहा गया है उसके एक-एक शब्दको प्रमाणित करनेके लिए जाँच की जाये तो मेरे संघको सबूत देनेमें खुशी होगी। चूंकि मुख्य अनुमतिपत्र सचिवने मेरा १ सितम्बरका पत्र परमश्रेष्ठके पास निर्देशके हेतु भेजा है, इसलिए क्या मैं यह आशा कर सकता हूँ कि यूरोपीयों द्वारा उल्लिखित जिन नियमोंको मेरे संघने असाध्य माना है, उन्हें अविलम्ब वापस ले लिया जायेगा? ब्रिटिश भारतीयोंके सम्बन्धमें तरह-तरहके निराधार वक्तव्य पेश किये जानेसे निर्दोष और ईमानदार आदमियोंको बिना अपराध, असुविधा और हानि उठानी पड़ती है। वे जब पराये झंडेके नीचे थे तब भी उन्हें ऐसी कठिनाइयाँ नहीं झेलनी पड़ी थीं।
आपका, आदि,
अब्दुल गनी
अध्यक्ष,
ब्रिटिश भारतीय संघ
प्रिटोरिया आर्काइब्ज : एल० जी० ९२/२१३२, पत्र संख्या ५०४