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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

किन्तु इतनेसे उनको सन्तोष नहीं हुआ। इसलिए उन्होंने उसके अन्तर्गत छोटी लड़कियोंकी प्रारम्भिक शिक्षाके लिए शालाएँ खोली। उनमें लड़कियोंको कपड़े-लत्ते, खाने-पीनेकी चीजें और पुस्तकें तक दीं। फलस्वरूप आज कलकत्तामें हजारों विदुषी स्त्रियाँ दिखाई देती हैं।

शिक्षकोंकी भी कमी थी। उसकी पूर्तिके लिए उन्होंने स्वयं शिक्षक-प्रशिक्षण विद्यालय शुरू किये। उन्होंने हिन्दू विधवाओंकी दयनीय स्थिति देखकर विधवा-विवाहका उपदेश शुरू किया। उसके लिए पुस्तकें लिखीं और भाषण दिये। बंगाली ब्राह्मणोंने उनका विरोध किया; किन्तु उन्होंने उनकी परवाह नहीं की। लोग उनको मारनेके लिए खड़े हो गये; किन्तु उन्होंने अपने प्राणोंका भय नहीं किया। उन्होंने सरकारसे विधवा-विवाहकी वैधताका कानून बनवाया। उन्होंने बहुत लोगोंको समझाया और प्रतिष्ठित लोगोंकी बाल-विधवा पुत्रियोंके विवाह कराये। अपने पुत्रको भी एक गरीब विधवा लड़कीसे विवाह करनेकी प्रेरणा दी।

कुलीन ब्राह्मण अनेक स्त्रियोंसे विवाह कर लेते थे। उनको २०-२० स्त्रियोंसे विवाह करनेमें भी शर्म न आती। ऐसी स्त्रियोंके दुःखको देखकर ईश्वरचन्द्र रोया करते। उन्होंने इस कुप्रथाको बन्द करानेके लिए जीवन-भर उद्योग किया। बर्दवानमें मलेरिया रोगसे हजारों गरीब पीड़ित होते देखे। उन्होंने अपने खर्चसे एक डॉक्टर रखा। वे उन लोगोंको खुद जाकर दवाएँ बाँटते और गरीबोंको घरोंमें जा-जा कर मदद पहुँचाते। उन्होंने इस तरह दो वर्ष तक सतत मेहनत की और सरकारकी मदद लेकर दूसरे डॉक्टर बुलाये।

यह सेवा-कार्य करते हुए उन्होंने औषधि-ज्ञानकी आवश्यकता अनुभव की। इसलिए होमियोपैथीका अभ्यास किया और उसमें कुशलता प्राप्त की। उसके बाद वे खुद ही दवा दे देते थे। गरीबोंकी मदद करनेके लिए लम्बे रास्ते तय करने पड़ते तो उन्हें कोई परवाह न होती थी।

वे बड़े-बड़े राजाओंके संकट दूर करने में भी उतने ही समर्थ थे। किसी राजाके साथ अन्याय होता अथवा उसपर गरीबी आ जाती तो वे अपने प्रभाव, ज्ञान और धनसे उसका संकट दूर करते थे।

इस प्रकारका जीवन व्यतीत करते हुए विद्यासागर सत्तर वर्षकी आयुमें सन् १८९० में चल बसे। दुनियामें इस प्रकारके लोग कम ही हुए है। कहा जाता है कि यदि ईश्वरचन्द्र किसी यूरोपीय राष्ट्रमें उत्पन्न हुए होते तो इंग्लैंडके लोगोंने नेल्सनका जैसा महान स्मारक खड़ा किया है वैसा ही स्मारक ईश्वरचन्द्रकी मृत्युके पश्चात् खड़ा किया जाता। किन्तु ईश्वरचन्द्रका स्मारक आज बंगालके छोटे और बड़े, गरीब और अमीर सभी लोगोंके हृदयों में स्थापित है।

अब हम समझ सकते हैं कि बंगाल किस प्रकार भारतके अन्य भागोंको अपने उदाहरणसे शिक्षा दे सकता है।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, १६-९-१९०५