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३४५. सीमन्त इत्यादि-सम्बन्धी भोज

जम्बुसरसे श्री मणिलाल छत्रपति लिखते हैं कि उनके परिवारमें सीमन्त संस्कारका अवसर आनेपर उन्होंने अन्त में यह निर्णय करनेका साहस कर लिया है कि जाति-भोज नहीं दिया जायेगा। मैं इसके लिए उन्हें बधाई देता हूँ। ऐसा साहस कांग्रेस-कार्यकर्ताओंमें कोई आश्चर्य की बात नहीं मानी जानी चाहिए। इस प्रकारके साहसके लिए एक बातकी जरूरत होती है और वह है जातीय बहिष्कारका भय न होना। जातिसे बहिष्कृत होनेका अर्थ है, जातीय भोजोंमें भाग न ले पाना और बेटे-बेटियोंके सम्बन्ध जातिमें न कर सकना। जहाँ जाति-भोजका बहिष्कार करना है वहाँ यदि हमें किसी भोजमें निमन्त्रण न मिले तो समझना चाहिए कि अच्छा हुआ, अपने-आप संकट कट गया और यदि बेटे-बेटियोंके सम्बन्ध जातिमें न हों तो इससे जातियोंके बन्धन सहजमें टूट सकते हैं। यदि देशका उत्थान होना है तो ये बन्धन तो टूटने ही चाहिए। इसलिए छत्रपति श्री मणिलाल-जैसे सुधारकोंको किसी प्रकारका भय करनेकी आवश्यकता नहीं है। इन भोजोंसे सभ्य लोग असभ्य बनते हैं, गरीबोंकी कमर टूटती है, देश कलंकित होता है। पैसे-टकेसे सुखी लोग भी भोज-प्रेमी बन जायें, यह हमें बिलकुल शोभा नहीं देता। इसलिए श्री मणिलाल छत्रपति-जैसे सुधारक ज्यों-ज्यों बढ़ते जायेंगे त्यों-त्यों ये कुप्रथाएँ कम होती जायेंगी। ऐसे भोजोंसे जो पैसा बचे उसका कुछ भाग सुधारकोंको सार्वजनिक कार्यके लिए और जो लोग जातिमें बने रहना चाहें उनकी सात्विक सेवाके लिए दे देना चाहिए। जहाँ पंच अन्यायपूर्ण व्यवहार करते हैं, वहाँ वे अपने उच्च पदसे गिर जाते हैं और सम्मानके पात्र नहीं रहते। इसलिए दानी सज्जनोंको चाहिए कि वे जाति-सुधारों लिए निश्चित की हुई द्रव्य-राशि ठीक तरहसे काम में लाये जानेकी सावधानी रखें।

[गुजरातीसे]

नवजीवन, २३-९-१९२८

 

३४६. पत्र: नानाभाई मशरूवालाको

आश्रम, साबरमती
२३ सितम्बर, १९२८

भाईश्री नानाभाई,

तुम्हारा पत्र मिला। अब जो स्थिति है उसमें तो मैं यह नहीं कह सकता कि मेरा जन्मदिन किस दिन है। पहले एक जन्मदिन था, किन्तु अब अनेक हो गये हैं। एक तो तिलक पंचांग के अनुसार है, जिसके बारेमें मुझे कुछ पता नहीं था। अंग्रेजी तारीखके अनुसार दूसरा दिन पड़ता है। सनातन पंचांग के अनुसार तीसरा, सौर पंचांग के अनुसार चौथा और सायण पंचांग के अनुसार पाँचवाँ होता है। इनके