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भाषण: सूरतमें

अधिकारियों और विधान परिषद्के सदस्योंको भी, उन्होंने सुखद समझौता करानेमें जो सहायता की, उसके लिए धन्यवाद देना चाहिए। और यदि हम अपने विरोधियों को भी धन्यवाद देनेके कर्त्तव्यमे चूक जाते हैं तो उसका मतलब यह होगा कि हममें विनयका अभाव है और उस हद तक हम सत्याग्रही नहीं हैं। इतनी असुविधा उठाकर गीली जमीन पर बैठे सूरतके नागरिकोंका यह विशाल समुदाय मुझे १९२१ का स्मरण दिलाता है। इसी स्थान पर मैंने १९२१ में आपसे जो शब्द कहे थे[१], वे मुझे अब भी याद हैं। शायद आपमें से कुछ लोगोंको स्मरण हो कि मैंने क्या कहा था। और मैं आपको अभी यह याद दिलाना चाहता हूँ कि सात साल पहले हमने जो-कुछ करनेका निश्चय किया था, उसे करनेमें हम किस प्रकार असमर्थ रहे हैं। यदि बारडोली और सूरत इस विजय-समारोह और भोजके बाद निश्चिन्त होकर बैठ जायें तो बारडोलीसे मिली शिक्षा व्यर्थ सिद्ध होगी। वल्लभभाई बारडोलीकी जनतासे यह कहते रहे हैं कि खुद अपने लोगों से लड़नेकी अपेक्षा सरकारसे लड़ना आसान है, क्योंकि हम स्वभावतः सरकारके तिल-जैसे अन्यायको ताड़ बना कर देखते हैं। यदि हममें मनुष्य-सुलभ स्वाभिमान है तो हमें ऐसा करना भी चाहिए। लेकिन जहाँ हमारा मुकाबला खुद अपने दोषों और कमियोंसे पड़ता है कि हम आँखें चुराने लगते हैं। इसलिए अपनी प्रतिज्ञाके आधे हिस्सेको पूरा कर लेनेवाली बारडोली की जनताको[२] मैंने उसका शेष आधा हिस्सा — अर्थात् पुरानी दरसे लगान अदा कर देना — भी पूरा कर देनेकी याद दिलायी। मैं जानता हूँ कि यह काम वे कुछ ही दिनोंमें कर देंगे। लेकिन उसके बाद? सत्याग्रह-संघर्षके दौरान आपने लोगोंमें जो जबरदस्त शक्ति और उत्साह पैदा कर दिया है, उसका सदुपयोग आप कैसे करेंगे? बारडोलीकी स्त्रियोंमें जो अभूतपूर्व जागृति आई है, उसका उपयोग आप कैसे करेंगे? आप उनकी सेवा कैसे करेंगे, उनसे अपना तादात्म्य कैसे स्थापित करेंगे और उनके दुःख दूर करनेमें आप उनकी सहायता किस प्रकार करेंगे? सत्याग्रहमें सविनय अवज्ञा, मदान्ध सत्ताके अत्याचारका सविनय प्रतिरोध शामिल है, लेकिन हममें प्रतिरोधकी क्षमता आये, इसके लिए आत्म-शुद्धि और रचनात्मक कार्य आवश्यक है। यदि मैं आपसे यह बताने को कहूँ कि १९२१ से आपने आत्म-शुद्धि और रचनात्मक कार्यकी दिशामें क्या किया है तो मैं जानता हूँ कि आपको और मुझे अपनी अकर्मण्यता पर दुःख और पश्चात्तापके आँसू ही बहाने पड़ेंगे।

मैं आपको यह बता देना चाहता हूँ कि मैं आज भी वही हूँ जो १९२१ में था। मुझे आपके सामने वही कठोर शर्तें रखनी हैं, वही शर्तें रखनी हैं जो, हम जिस शान्ति, खुशहाली, स्वराज्य, रामराज्य या ईश्वरीय राज्यके लिए लालायित हैं, उसे पानेके लिए अनिवार्य हैं। सूरतके आरामतलब हिन्दू और मुसलमान जबतक ईश्वरके नाम पर एक-दूसरेकी जानके गाहक बने हुए हैं और आपसमें इस तरह झगड़नेके बाद न्यायके लिए सरकारी अदालतोंकी ओर दौड़नेकी प्रवृत्ति पाले हुए हैं तबतक उन्हें

 

  1. देखिए खण्ड २१, पृष्ठ २९१-९२।
  2. देखिए "भाषण: बारडोलीमें-१", १२-८-१९२८।
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