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१४०. भूमिका: 'सेल्फ रेस्ट्रेंट वर्सेस सेल्फ इंडल्जेंस' की[१]

सत्याग्रह आश्रम, साबरमती[२]
३ अगस्त, १९२८

प्रसन्नताकी बात है कि जनता इस पुस्तककी तृतीय आवृत्तिकी मांग कर रही है। बड़ी इच्छा थी कि इसमें एक-दो अध्याय और जोड़ देता, लेकिन तृतीय आवृत्तिके प्रकाशनमें मैं विलम्ब नहीं कर सकता, और उसके बिना ये अध्याय जोड़े नहीं जा सकते। यदि मुझे भरोसा होता कि इसके लिए जितने समयकी जरूरत है उतना समय में निकाल सकूँगा तो ये अध्याय में अवश्य जोड़ देता।

लेकिन जिज्ञासु जनोंसे बराबर प्राप्त होते रहनेवाले पत्रोंमें मैंने जो-कुछ देखा है, उसको ध्यान में रखते हुए मैं एक निश्चित चेतावनी देना चाहूँगा: जो लोग संयमित जीवनमें विश्वास रखते हैं उन्हें विषादरोगी (हाइपोकॉण्ड्रिऐक) नहीं बन जाना चाहिए। मेरे पास जो पत्र आते हैं उनसे ज्ञात होता है कि इन पत्र लेखकोंमें से बहुत-से लोग संयम बरतनेके अपने प्रयत्नकी विफलता पर बहुत चिन्ता करते हैं। हर अच्छी चीजकी तरह संयमके लिए भी असीम धैर्यकी आवश्यकता होती है। निराश होनेका कोई कारण ही नहीं है और चिन्ता तो बिलकुल नहीं करनी चाहिए। मनसे बुरे विचारोंको हटानेका सीधा प्रयास नहीं करना चाहिए। ऐसा प्रयास तो अपने-आपमें एक भोग है।

शायद सबसे अच्छा नुस्खा है बुरे विचारोंका प्रतिरोध न करना, अर्थात् हमें बुरे विचारोंके अस्तित्वकी उपेक्षा करनी चाहिए और सामने जो काम पड़े हों, उनमें लगातार व्यस्त रहना चाहिए। इसका मतलब यह हुआ कि हमारे पास हमें तन्मय कर लेनेवाला कोई ऐसा काम होना चाहिए, जिसपर मन, आत्मा और शरीर सबको केन्द्रित कर देने की जरूरत हो। "बेकार हाथ तो फिर भी करनेको कोई-न-कोई बुरा काम ढूंढ ही लेंगे" – यह कहावत जितनी इस मामलेमें लागू होती है उतनी और किसी मामले में नहीं। जब हम इस तरह व्यस्त रहेंगे तो बुरे विचारोंके लिए कोई गुंजाइश ही नहीं रह जायेगी और बुरे कार्योंके लिए तो और भी नहीं। अतएव व्यक्ति तथा विश्वकी प्रगतिके लिए अनिवार्य संयमके नियमका पालन करनेकी इच्छा रखनेवालों के लिए अपनी-अपनी शारीरिक शक्ति-भर कठिन श्रम करना नितान्त आवश्यक है।

मो॰ क॰ गांधी

[अंग्रेजीसे]

सेल्फ रेस्ट्रेंट वर्सेस सेल्फ इंडल्जेंस

 

  1. इसका मसविदा (एस॰ एन॰ १४०६३) साबरमती संग्रहालय, अहमदाबाद में उपलब्ध है।
  2. स्थायी पता।