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पत्र: जी॰ वी॰ सुब्बारावको

जैसे सब नदीयां समुद्रमें जाकर मीलती हैं। यथार्थ रूपसे गंगा भी कहां है, कहां है यमुना? वैसे ही सब मनुष्यका समझना। सब लड़कोंको अनिल, निखिल समझो और सब दुःख नष्ट हुआ। जो स्वार्थी है उसको एक दो तीन ऐसे संख्याबद्ध लड़के हैं जो निःस्वार्थ है उसके तो असंख्य लड़के हैं।

बापुके आशीर्वाद

जी॰ एन॰ १६५२ की फोटो-नकलसे।

 

११३. पत्र: सी॰ एफ॰ एन्ड्रयूजको

२७ जुलाई, १९२८

प्रिय चार्ली,

नीचे तुम्हारे तारके उत्तरमें भेजे तारकी नकल दे रहा हूँ। मेरे पास अभी और समय नहीं है। सुब्वैया अपनी गर्भिणी पत्नीको मायके छोड़ने मद्रास गया है। महादेव अब भी खाट पर ही है, हालाँकि वैसे वह बिलकुल ठीक है।

तुम्हें 'आत्मकथा' की पाँच प्रतियाँ भेज रहा हूँ।

सस्नेह।

बापू

अंग्रेजी (जी॰ एन॰ २६२८) की फोटो-नकलसे।

 

११४. पत्र: जी॰ वी॰ सुब्बारावको

२७ जुलाई, १९२८

प्रिय मित्र,

बेशक, मैं सचाईको स्वीकार करनेके लिए अपना दिमाग बिलकुल खुला रखूँगा और जब-कभी मैं उधर आऊँगा आप मुझसे अवश्य मिल सकेंगे। मेरे लिए इससे ज्यादा खुशीकी बात कुछ नहीं होगी कि मुझे यह भान हो जाये कि उस दिवंगत भाईके विषयमें मेरे विचार गलत थे, जिसके कई गुणोंसे मैं बिलकुल अनजान नहीं हूँ।[१]

हृदयसे आपका,
मो॰ क॰ गांधी

श्रीयुत जी॰ वी॰ सुब्बाराव
इंडियन बैंक, वेजवाड़ा, दक्षिण भारत

अंग्रेजी (जी॰ एन॰ ३६२६) की फोटो-नकलसे।

 

  1. देखिए "पत्र: जी॰ वी॰ सुब्बारावको", २१-७-१९२८ भी।