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८१. मेरठके समीप खादी

डा० रायने अपने मेरठके हालके दौरेके तुरन्त बाद मुझे अपने अनुभवोंका एक विवरण लिख भेजा है। मैं उनके पत्रमें से निम्न अंश देता हूँ :

....लोग मुझे शहरसे २० मील उत्तर एक गाँवमें ले गए। इस गाँवमें किसान अपेक्षाकृत समृद्ध थे...हर घरमें जहाँ भी मैं गया, मैंने लगभग सबमें मां, बेटी और कभी-कभी बहूको भी धूपमें बैठकर चरखा चलाते हुए पाया। इनका काता हुआ सूत १० से लेकर १२ नम्बर तकका था। गाँवमें जो मोटा कपड़ा बुना जाता है, उसे गाँव के लोग ही काममें लेते हैं और गाँवमें तैयार पूनियाँ फेरी लगाकर बेची जाती हैं। खेतोंमें भी दूसरी फसलोंके साथ-साथ जहाँ-तहाँ कपासकी फसल खड़ी दिखाई देती है। इन अभाग किसानों तक सभ्यताकी, पूरी लहर अभी नहीं पहुँच पाई है, किन्तु अब उन्हें इसका कुछ-कुछ स्वाद मिलने लगा है। बनारस गांधी आश्रम गहरी लगनवाले त्यागी स्थानीय कार्यकर्त्ताओंके एक दलकी सहायतासे पूरी शक्तिसे प्रयत्न कर रहा है; किन्तु वहाँ धनकी और उचित संगठन दोनोंको बेहद जरूरत है।

यदि हम अपने प्रति किये गये विश्वासको निभा सकें, तो पंजाबमें अथवा भारतके अन्य स्थानोंमें कहीं भी चरखेकी गूंज बन्द नहीं होगी। बनारस आश्रमके कार्यकर्त्ताओंके जिस दलकी ओर डा० रेका ध्यान गया है, वह खादीकी नींव मजबूत बनानेके लिए जिलेमें और जिलेके आसपास काम कर रहा है। अब चूंकि आश्रमके जनक आचार्य कृपलानी अपने कार्यकर्ताओंके बीचमें पहुँच गये हैं, इसलिए उनका उत्साह दूना हो जाना चाहिए और इस कार्य में जनताकी ओरसे और भी अधिक सहायता और समर्थन मिलना चाहिए।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया १-३-१९२८


१. केवल कुछ अंश ही यहाँ दिये जा रहे हैं।