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४६. तार : सी० एफ० एन्ड्रयूजको

मदुरै
१ अक्टूबर, १९२७

सी० एफ० एन्ड्रयूज
भाद्रक

यह सर्वोत्तम उपलब्ध कताई निबन्ध[१] है । लेकिन तुम जबतक उसे पूरा पढ़ न लो तबतक मत भेजना ।[२] तार दो कि हाथ पूरी तरह ठीक हुआ या नहीं।

बापू

अंग्रेजी (एस० एन० १२८३३) की फोटो-नकलसे।

४७. पत्र : मीराबहनको

१ अक्टूबर [ १९२७]

[३]

चि० मीरा,

कल मुझे तुम्हारे पत्रकी आशा थी, लेकिन आया नहीं। उदास मत होना और न ही उद्वेगको दूर करनेकी कोशिशमें और ज्यादा उद्विग्न | हर समय यह मत सोचो कि मुझे क्या पसन्द है और क्या नहीं, बल्कि जो तुम ठीक समझो वही करो - चाहे वह जैसा मैं पसंद करता हूँ वैसा न भी निकले। मैं चाहता हूँ कि तुम शरीरसे, मनसे और आत्मासे स्वस्थ बनो।

अपना कार्यक्रम इतना व्यस्त मत बनाओ जिससे तुम्हें साँस लेनेका भी अवकाश न मिल सके।

तुम्हारा वजन जानना चाहूँगा।

सप्रेम,

बापू

अंग्रेजी (सी० डब्ल्यू० ५२९९) से।
सौजन्य : मीराबह्न
  1. १. एस० वी० पुणताम्बेकर और एन० एस० बरदाचारी द्वारा लिखित हैंड स्पिनिंग ऐंड हैंड वीविंग - ऐन ऐसे; देखिए खण्ड ३०, पृष्ठ ३९८ तथा खण्ड ३२, पृष्ठ ५१४ । १९२७।
  2. २. सम्भवतः वाइसरायको, देखिए “पत्र : सी० एफ० एन्ड्यूजको", १-१०-१९२७ तथा ११-११-
  3. ३. वर्षका निर्धारण मीरावइनके उद्वेगके उल्लेखसे किया गया है। देखिए "पत्र: मीराबइनको ", २-१०-१९२७।