पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 35.pdf/९६

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

४५. ए० वेदराम अय्यरके साथ बातचीत

[१]

[ ३० सितम्बर, १९२७ के लगभग ]

[२]

मैं अपना दोष स्वीकार करता हूँ।[३] लेकिन संघकी स्थापना किसी दूसरे उद्देश्यसे की गई है। यह मैं आपको विस्तारसे बताऊँगा। हम लाखों भूखे लोगोंपर, उन सबको कतैया बनानेके लिए, हजारों रुपये खर्च कर सकते हैं, लेकिन स्वैच्छिक कताईको बढ़ावा देनेके हेतु उपयुक्त एजेंसियोंपर हम एक पैसा भी खर्च नहीं कर सकते। जो लोग संघमें स्वैच्छिक कातनेवालोंकी हैसियतसे प्रवेश करते हैं वे त्यागकी भावनासे कातते हैं, और वह त्याग तो कोई त्याग ही नहीं है जिसे बाह्य प्रेरणाकी जरूरत हो। मैं जानता हूँ काममें ढिलाई करनेवाले लोग हैं, मुझे मालूम है कि अदायगी न करनेवालोंकी हमारी सूची लम्बी है लेकिन मैं ऐसे लोगोंको सचेत करनेके लिए कोई एजेंसी नियुक्त नहीं करूंगा। जो लोग अपने चारों ओर घोर उदासीनताके बीच भी अपना त्याग बराबर जारी रखेंगे और अपनी मातृभूमिको अपना अंश देते रहेंगे वे राष्ट्रीय आन्दोलनके कर्णधार माने जायेंगे और वे तो अपने इस व्रतका पालन मेरे या इस आन्दोलनके बाद भी करते रहेंगे। लेकिन मैं किसी स्वैच्छिक एजेंसीका बहिष्कार नहीं करता। उदाहरणार्थ, आप अपने मित्रोंको जितना चाहें उतना प्रोत्साहित कर सकते हैं, वास्तवमें चरखा संघके प्रत्येक सदस्यका यह कर्त्तव्य है कि वह सदस्योंकी संख्या में वृद्धि करे और यह देखे कि प्रत्येक सदस्य अपना अंश नियमपूर्वक देता रहे। आप जैसे वकीलोंके लिए तो अर्थात् जो इसके औचित्यको मानते हैं, यह सबसे सरल बात है। आप अपने मुंशीको यह काम सौंप सकते हैं। आप उससे कहें कि वह समय-समयपर हरेक सदस्यके घर जाये, उनसे सूतका अंश प्राप्त करे और यदि पिछला कुछ बकाया हो तो उसकी याद दिलाये। दक्षिण आफ्रिकामें मैंने कांग्रेसका अधिकांश कार्य अपने मुंशियोंसे ही करवाया था। यह इसलिए नहीं कि मैं सनकी था । हरेक वकीलको, यदि वह सार्वजनिक कार्य में रुचि लेता है तो, अपना योगदान करना होता है। उदाहरणके लिए, युद्धके दौरान वहाँ हरेक वकीलने मोर्चेपर जानेके लिए अपना पेशा छोड़ दिया था, और मुझे विलम्ब करता हुआ देखकर मजिस्ट्रेटकी आँखोंमें गुस्सा साफ नजर आ रहा था। मैं आपको यह बता दूं कि महज शर्मकी वजहसे मेरे लिए वकालत जारी रखना मुश्किल हो गया। मुझे यह महसूस हुआ कि अगर मुझे वकीलका रुतबा कायम रखना है तो मुझे भी जाना चाहिए।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, १३-१०-१९२७
  1. १,
  2. २. महादेव देसाईके " साप्ताहिक पत्र " से।
  3. ३. ए० वेदराम अय्यरने यह शिकायत की थी कि सूतकी अदायगोकी ठीक देखरेखके लिए कोई एजेंसी न होनेके कारण ही चरखा संघके सदस्योंने अपना सूतका अंश नियमपूर्वक नहीं दिया है।