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भाषण : तिरुमंगलम्में

और यदि आपके पास कार्यकर्ता हैं तो कोई वजह नहीं कि यहाँ काते गये सारे सूतको बाजारमें न बेचा जा सके। और यदि आप और आगे बढ़कर खादी कार्य करें तो मुझे यकीन है कि स्थानीय बाजार आपको पर्याप्त प्रतीत नहीं हो सकता। इन स्थानोंपर उत्पादित कपड़े की कीमतें बुने गये कपड़ेकी किस्मके मुताबिक अ० मा० च० संघ द्वारा निर्धारित की जायेंगी। मैं देशके इन सब भागोंमें जो यात्रा कर रहा हूँ वह केवल थैलियाँ इकट्ठी करनेके लिए नहीं बल्कि खादीके प्रचार कार्य के लिए कर रहा हूँ।

मैं चाहूँगा कि जो बहनें यहाँ बैठी हैं वे मेरे भाषणके इस अंशको सुनें। इस गरीब देशमें लाखों ऐसे पुरुष और स्त्रियाँ हैं जो वर्षमें चार महीने खाली बैठे रहते हैं। रेलवे लाइनके नजदीक होनेके कारण आप उन गरीब लोगोंके मुकाबले आधे गरीब भी नहीं हैं जिनके लिए मैं यह यात्रा कर रहा हूँ और जिनकी ओरसे आज रात मैं आपके सामने बोल रहा हूँ। वे इतने गरीब हैं कि सरकार द्वारा प्रकाशित रिपोर्टोंमें भी यह कहा गया है कि कुछ लोग ऐसे हैं जो भोजनके अभावमें भूखों मर रहे हैं। आशा है आप ऐसा सोचनेकी गलती नहीं करेंगे कि यदि रेलवे लाइनोंको भारतके हरेक गाँवके निकट पहुँचा दिया जाये तो यह दुखद समस्या हल हो जायेगी। यदि आप रेलोंके इतिहासका अध्ययन करें तो आपको यह मालूम होगा कि हमारी यह रेल प्रणाली केवल गाँवोंका शोषण कर रही है और उन्हें बिलकुल चूसे डाल रही है। संसारमें रेलोंका होना जरूरी है और वे लोगोंके लिए लाभकारी भी हो सकती हैं, लेकिन यह देश मुख्य रूपसे एक कृषि प्रधान देश है और इसलिए ग्रामीणोंके लिए रेलें भारस्वरूप हैं। यदि आप खादी पहनें-- ऐसी खादी जिसे गरीब ग्रामवासियोंने तैयार किया हो तो हमारे द्वारा उनका जो शोषण हो रहा है उसका यह प्रतिदान होगा। मैं यहाँ एकत्रित सभी पुरुषों और स्त्रियोंसे कहता हूँ कि वे विदेशी वस्त्र त्याग दें तथा हाथकती और हाथबुनी खादीके अतिरिक्त और कुछ न पहनें। मैं इस थैलीको केवल एक शर्तपर स्वीकार करता हूँ और वह यह है कि आप सब लोग भविष्य में केवल खादीका ही इस्तेमाल करेंगे। मैं यहाँ बैठी हुई स्त्रियोंसे चाहूँगा कि वे इस बातको समझें कि कताई आन्दोलन अनिवार्य रूपसे स्त्रियोंका आन्दोलन ही है। मेरे लिए तो चरखा भारतीय नारीकी मुक्तिका प्रतीक है और इसलिए मैं चाहूँगा कि आप इस प्रयत्नमें मुझे केवल अपना रुपया या जेवर देकर ही नहीं बल्कि खादी पहन कर भी सहयोग दें। यदि अपने घरेलू काममें आप कताईकी जरूरत न समझती हों तो आप इसे यज्ञ समझकर कर सकती हैं। यदि आप ऐसा करेंगी तो इससे देशकी सम्पदामें वृद्धि होगी और खादीकी कीमत भी कम हो जायेगी ।

[अंग्रेजीसे ]
हिन्दू, ३-१०-१९२७