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भाषण : महिलाओंकी सभा, मदुरमें

या भीखके रूपमें नहीं बाँटा जायेगा, बल्कि उनसे जो सूत कातनेको कहा जायेगा, उसके पारिश्रमिकके रूपमें उन्हें दिया जायेगा। उन बहनोंको चरखा और रुई दी जायेगी, और उनसे कता हुआ सूत खरीदा जायेगा। इसलिए में चरखेको हमारी गरीब बहनोंकी दशा सुधारनेका सबसे बड़ा साधन मानता हूँ । चरखा उन्हें आशाकी किरण दिखायेगा और उनमें आत्मसम्मानको भावना उत्पन्न करेगा। चरखा भारतके करोड़ों लोगोंको एक सूत्रमें बाँधनेका साधन बनेगा | आप लोग केवल चन्दा देकर ही सन्तुष्ट न हो जायें, क्योंकि अगर आप खद्दर नहीं पहनेंगी तो यह रुपया व्यर्थ होगा। अगर आपको अपनी गरीब बहनोंसे सहानुभूति हैं तो आप उनके हाथका कता और बुना खद्दर हो पहनें। पहली नजरमें ऐसा लग सकता है कि सभी विदेशो कपड़ोंका त्याग करना कठिन है, लेकिन अगर कोशिश करेंगी तो पायेंगी कि यह बहुत ही आसान चीज है। अगर आप सीताकी तरह बनना चाहती हैं तो मैं आपसे बहु- मूल्य कपड़े और गहने छोड़ कर केवल खादी पहननेको कहूँगा। लेकिन आप अपने गहन दें, इससे पहले मैं एक शर्त लगाना चाहूँगा, और वह यह कि आप अपने माता- पिता या पतियोंसे नये गहनोंकी मांग नहीं करेंगी। महात्माजीने कहा कि तीन या चार साल पहले मुझे एक महिलाने पन्द्रह हजार रुपये के गहने भेंट किये थे। मैं कि न केवल आप गहने न पहने, बल्कि अपने बच्चोंको भी खतरेमें न डालें। क्योंकि मुझे पता चला है कि अभी कुछ ही दिन पहले मदुरैम एक घटना हुई, जिसमें एक सम्भ्रान्त व्यक्तिकी लड़कीके गहनोंको कुछ लुटेरोंने लूट लिया। मैं आपसे यह भी याद रखने को कहना चाहता हूँ कि नारीका सौन्दर्य गहनोंमें नहीं है, बल्कि हृदय शुद्ध रखनेमें है। आपको यह सचाई अपने बच्चोंको भी सिखानी चाहिए और उन्हें उचित शिक्षा देकर अपने चरित्रका निर्माण करना सिखाना चाहिए। चाहता

में यह भी कहूँगा कि किसी व्यक्तिको केवल इसलिए अस्पृश्य समझना कि वह किसी परिवेश-विशेषमें पैदा हुआ है, पाप है। यदि आप सीताका अनुकरण करना चाहें तो आप देखेंगी कि सीतान निषादराजको भी अस्पृश्य नहीं माना था, बल्कि उन्होंने निषादराजको सेवाओंको खुशीसे और कृतज्ञतापूर्वक स्वीकार किया था। इसलिए मुझे यह कहने में कोई हिचक नहीं है कि अस्पृश्यताकी बुरी प्रथा समाप्त होनी ही . चाहिए।

एक अन्य महत्त्वपूर्ण बात, जिसके विषयमें मैं आपसे बात करना चाहता हूँ, बाल- विवाहके सम्बन्धमें है। आपको समझना चाहिए कि लड़कियोंको नौ वर्ष, बारह वर्ष, यहाँतक कि तेरह वर्षकी आयुमें भी ब्याह देनेकी प्रथा बर्बरतापूर्ण है। ऐसी चीजको में अनैतिक भी समझता हूँ, और आपसे आग्रह करता हूँ कि जबतक लड़की सोलह वर्षको न हो जाये तबतक उसका विवाह नहीं किया जाना चाहिए, और न उसके सामने ऐसी परिस्थितियाँ आने देनी चाहिए जिससे उसके मनमें विवाहका खयाल भी उठे । मगर हिन्दू शास्त्र कहते हैं कि लड़कियोंको वयस्क होने से पहले ब्याह देना चाहिए तो ३५-५