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४२. पत्र : रामदास गांधीको

[ ३० सितम्बर, १९२७ ]

[१]

चि० रामदास,

तबीयत अब ठीक हो गयी होगी। वल्लभभाईकी अनुमति लेकर अमरेली अवश्य

बापूके आशीर्वाद

गुजराती (सी० डब्ल्यू० ५२८०-२) से।
सौजन्य : मीराबहन

४३. भाषण : महिलाओंकी सभा, मदुरैमें

३० सितम्बर, १९२७

महात्माजीने भाषणका आरम्भ करते हुए महिलाओंको उनके अभिनन्दनपत्र तथा थैली, और अनेक लड़कियों तथा महिलाओं द्वारा दी गई सूत और अन्य चीजोंकी भटके लिए धन्यवाद दिया। इसके बाद उन्होंने उपस्थित महिलाओंसे कहा कि वे हिन्दी सीखें जो उत्तर भारतकी उनकी बहनोंकी बोलचालकी भाषा है।

महात्माजीने कहा, आप लोग याद रखें कि आपने यह थैली मुझे मेरे निजी इस्तेमालके लिए नहीं दी है, बल्कि अपनी करोड़ों भूखी बहनोंके लिए दी है। आप जिस आराममें रहती हैं, उसे देखते मुझे विश्वास है कि आपके लिए अपनी हजारों बहनोंको कष्टकर गरीबीकी कल्पना करना कठिन होगा। इन बहनोंको एक वक्त खाना भी मुश्किलसे मिलता है। हमारी ऐसी बहन हैं, जिनके पास अपना तन ढँकनके लिए पर्याप्त कपड़ा भी नहीं है। मैंने ऐसी कुछ गरीब बहनोंसे बात की है, जिनके पास तनके कपड़ेको छोड़ दूसरा कपड़ा नहीं है और जिसके कारण वे बिना नहाये ही गुजारा करनेपर मजबूर हैं। यह तो कहने की जरूरत ही नहीं कि उनके पास कोई गहना-जेवर नहीं है। वे शायद घी, तेल या दूधका स्वाद भी नहीं जानती हैं। करोड़ों बहनोंके पास सालमें चार महीने कोई काम नहीं होता। मैंने जो कुछ बताया है, उसपर शायद आपको विश्वास न हुआ हो, लेकिन मैं आपसे सच कहता हूँ कि कई विदेशियोंने भी ये चीजें देखी हैं और उनके बारेमें लिखा है। इन्हीं बहनोंके लिए आज मैंने आपसे थैली स्वीकार की है। यह रुपया उनके बीच वान

  1. १. यह पत्र मीराबहनको लिखे इसी तारीखके पत्रकी पीठपर है।