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४०. भाषण : सौराष्ट्र क्लब, मदुरैमें

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२९ सितम्बर, १९२७

मैं आपके सुन्दर अभिनन्दनपत्र तथा आपकी थैलीके लिए आपको धन्यवाद देता हूँ। इस दौरेमें मुझे जो अभिनन्दनपत्र मिले हैं, मुझे याद नहीं आता कि मैंने उनमें से किसीके लिए "सुन्दर" विशेषणका इस्तेमाल किया हो। मैं आपके अभिनन्दनपत्रको जिस कारणसे सुन्दर कहता हूँ, वह शायद आप न समझ पाये हों। मैंने उसे सुन्दर इसलिए कहा है कि आपने उसे मुझे मूल रूपमें दिया है और वह आपकी बोलीमें लिखा हुआ है जो कि मराठी और गुजरातीका मिश्रण है। इससे पता चलता है कि आप अपनी पुरानी विशेषताओंको भूले नहीं हैं। ऐसा नहीं कि मैं बिना किसी भेद-भावके अपनी सभी पुरानी चीजोंसे प्यार करता हूँ। जहाँ वे खराब हैं, अनैतिक है, हानिप्रद हैं, वहाँ हमारा यह कर्त्तव्य है कि हम उन्हें नष्ट कर दें, मुला दें। लेकिन अपनी भाषा या बोलीको न छोड़ना कभी बुरी चीज नहीं है। और आखिरकार, महान मराठी भाषा और गुजराती भाषा आजकी जीवन्त भाषाएँ हैं, जिनका उपयोग ऐसे लोग करते हैं जो हमारे देशके इतिहासपर अपनी छाप छोड़ रहे हैं। और मुझे इस बातकी भी खुशी है कि आपने देवनागरी लिपिको बनाये रखा है।

और इसलिए मुझे आपके अभिनन्दनपत्रसे यह जानकर और अधिक खुशी हुई है कि आपके हाईस्कूलमें, जिसमें छात्रोंकी अच्छी संख्या है, हिन्दीको एक वैकल्पिक भाषा बना दिया गया है। चूंकि मैं उत्तर और दक्षिण तथा पूर्व और पश्चिमके बीच किसी किस्मकी दीवारको स्वीकार करनेको तैयार नहीं हूँ, इसलिए आप सब तमिल जानें, यह बात मुझे बहुत पसन्द आयेगी, लेकिन यह तो एक अतिरिक्त उपलब्धि, एक अतिरिक्त शोभा होनी चाहिए और इसका ज्ञान हिन्दीकी कीमतपर नहीं प्राप्त करना चाहिए। इसलिए मैं चाहूँगा कि आपकी समिति आपके हाईस्कूलमें हिन्दीको अनिवार्य विषय बनानेका निश्चय करे। और चूंकि मैं आपसे हिन्दीके महत्त्वको अपने दक्षिणके भाइयोंकी अपेक्षा ज्यादा समझनेकी अपेक्षा करता हूं, इसलिए मैं चाहूँगा कि आप हिन्दीमें विशेष योग्यता प्राप्त करें और आपके नगरमें जो हिन्दी आन्दोलन चल रहा है, आप उसकी आर्थिक सहायता करें। इस नगरमें आप एक सुगठित, ऐक्यबद्ध, कर्मठ और उद्यमशील समुदायके रूपमें रह रहे हैं। इसलिए आपके लिए इस जिम्मेदारीको ओढ़ लेना आसान है, और इस प्रकार आपको उत्तरके[२] लोगोंके सरसे हिन्दी प्रचारका वह बोझ हटा लेना चाहिए जो वे अभीतक वहन करते

  1. १. इस भाषणके कुछ अंश १३-१०-१९२७ के यंग इंडियामें “द फैलेसो ऑफ़ हैंडलूम वीविंग" शीर्षकसे प्रकाशित हुए थे ।
  2. २. मूलमें “ साउथ " (दक्षिण) था ।