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पत्र : मीराबहनको

लेखोंमें अपने मतके समर्थनमें अपेक्षाकृत अधिक विस्तृत और व्यापक तर्क दिये हैं जिनके प्रमाणमें उन्होंने वेदोंमें से बहुतसे उद्धरण भी प्रस्तुत किये हैं। मैं जिज्ञासुओंको इन मूल्यवान लेखोंको पढ़नेकी सलाह देता हूँ। वेदोंका स्वयं मैंने अध्ययन नहीं किया है अतः मैं इस उत्तम नियमका पालन कर रहा हूँ कि जहाँ तनिक भी सन्देह हो वहाँ सही बातकी तरफ ही झुकना चाहिए, और इस मामलेमें यही विश्वास सही है कि जिन लोगोंने हमें 'वेद' दिये हैं वे गो-बलि देने या गो-भक्षण करनेके, जो कि हमारे युगमें अपराध प्रतीत होते हैं, दोषी नहीं थे। अन्यथा इस चर्चाका वर्तमान युगसे कोई सम्बन्ध नहीं है क्योंकि हिन्दू हृदयमें गायके प्रति इतनी गहरी श्रद्धा है कि वैदिक युगमें गो-बलि या गो-भक्षण सिद्ध करनेवाले किसी भी मतका, भले ही वह कितना ही प्रामाणिक क्यों न हो, उस श्रद्धापर कोई प्रभाव नहीं पड़ सकता । तथापि उन लोगोंके लिए, जो ऐसा मानते हैं कि प्राचीन कालमें जो कुछ होता था उसे इस युगमें भी हर वैध तरीकेसे आरम्भ कराया जाना चाहिए, इस चर्चाका महत्त्व केवल बौद्धिक ही नहीं है। ऐसे लोग पण्डित सातवलेकरके जिन लेखोंका मैंने उल्लेख किया है उन्हें, तथा श्रीयुत वैद्यके प्रकाशित निबन्धोंको, जो अंग्रेजीके साथ ही मराठी और हिन्दी भाषामें भी उपलब्ध हैं, पढ़ लें।

[ अंग्रेजीसे]]
यंग इंडिया, २९-९-१९२७

३९. पत्र : मीराबहनको

[ २९ सितम्बर, १९२७ ]

[१]

चि० मीरा,

यह सिर्फ यही बतानेको लिख रहा हू कि तुम्हारा खयाल मेरे दिलसे हट नहीं सकता। सख्त ऑपरेशनके बाद हर डाक्टर ठण्डक पैदा करनेवाला मरहम लगाता है। यह मेरा मरहम है।

रामदासको बता देना कि उसका पत्र अभी-अभी मिला है। उसे जल्दी स्वस्थ हो जाना चाहिए।

सप्रेम,

बापू

अंग्रेजी (सी० डब्ल्यू ० ५२७९) से ।
सौजन्य : मीराबहन
 
  1. १. डाकको मुहरसे