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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

इतना ही स्थान है जितना कि लुधियाना रेजीमॅटके सिपाहियोंके लिए है )लगभग हमारे खिलाफ ही कर दिया था, यद्यपि बादमें उसी रेजीमेंटने बड़ी अद्भुत सेवा की।

जिस 'वीर' के सम्मानमें 'सार्वजनिक चन्दे' से यह स्मारक खड़ा किया गया है, उसके असली चरित्रको प्रकट करनेके लिए उद्धरणोंके अलावा और भी बहुतसी चीजें हैं, लेकिन यहाँ उन सबका हवाला दे पाना सम्भव नहीं है। ऐसी प्रतिमाएँ अपशकुनकी सूचक हैं। वे इसके स्पष्ट प्रमाण हैं कि अंग्रेजी सरकारका दारोमदार अन्ततः किस चीजपर है। अर्थात् उसका दारोमदार आखिरकार आतंक और झूठप र ही है। ये शब्द कठोर जरूर हैं, लेकिन साथ ही उतने ही सत्य भी हैं। इसलिए प्रत्येक भारतीय, प्रत्येक सच्चे अंग्रेजका यह कर्त्तव्य है कि वह अपनी समस्त शक्तिसे इस आतंक और झूठका विरोध करे। लेकिन अपनी समस्त शक्तिसे विरोध करनेका तरीका प्रतिशोधकी भावनासे काम लेना नहीं है, आतंक और झूठका जवाब आतंक और झूठसे देना नहीं है। उसका तरीका तो इन दोनोंका उत्तर इन दोनोंके ठीक विपरीत आचरण करके, अर्थात् आतंकका उत्तर अहिंसासे और झूठका सत्यसे देना है। यह रास्ता कठिन हो सकता है, लेकिन यदि भारत और दुनियाको कायम रहना है तो यही एक मात्र रास्ता है। इसलिए जिन नौजवानोंने संघर्ष छेड़ा है, वे यदि ईमानदारीके साथ उसपर अहिंसापूर्वक आरूढ़ रहेंगे तो वे सम्पूर्ण सहानुभूतिके पात्र हैं और यह बहुत प्रसन्नताकी बात है कि स्थानीय कांग्रेस कमेटीने इस मामलेको बड़े उत्साहसे अपने हाथमें लिया है।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, २९-९-१९२७

३८. वेदोंमें गो-बलि

२ जूनके 'यंग इंडिया' में श्रीयुत सी० बी० वैद्यका एक लेख प्रकाशित हुआ था जिसमें गाय और गो-वंशकी रक्षाके बारेमें कुछ मूल्यवान सुझाव दिये गये थे। किन्तु उस लेखमें विद्वान लेखकने अपना यह मत व्यक्त किया था कि वैदिक कालमें गायकी बलि देने और गो-मांस खानेकी प्रथा प्रचलित थी। पण्डित सातवलेकरने वैदिक कालमें गो- बलि और गो-भक्षणके बारेमें श्रीयुत वैद्यके कथनका खण्डन करते हुए मुझे हिन्दीमें एक लेख भेजा है। चूंकि मेरा मंशा कोई अखबारी विवाद खड़ा करनेका नहीं बल्कि केवल सत्यको प्रकाशमें लानेका था, अतः मैंने उस लेखको श्रीयुत वैद्यके पास भेज दिया। उन्होंने सौजन्यतापूर्वक तत्काल अपना उत्तर मुझे भेजा। मैंने इस उत्तरको पण्डित सातवलेकरके पास भेज दिया, और उन्होंने अपना प्रत्युत्तर मुझे भेजा। अब मैं पण्डित सातवलेकरके लेखोंका महादेव देसाई द्वारा किया गया अनुवाद[१] और श्रीयुत वैद्यके उत्तरका मूल पाठ देता हूँ। पण्डित सातवलेकरने वैदिक धर्म शीर्षकसे अपने दो

  1. १. यहां नहीं दिया जा रहा है।