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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

वालोंका यह पवित्र कर्तव्य है कि गांववाले शहरोंके लिए जो-कुछ करते हैं, उसके बदलेमें वे कुछ थोड़ा-सा प्रतिदान दें। मेरी विनम्र रायमें भारतकी दिनोंदिन गहरी होती गरीबीकी समस्या, हिन्दू-मुस्लिम एकताकी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण समस्या या इन भागोंमें ब्राह्मण और अब्राह्मणकी कठिन समस्यासे भी कहीं ज्यादा महत्त्वपूर्ण है। ये प्रश्न तो अन्ततः भारत-रूपी समुद्रकी सतहपर मामूली-सी लहरोंकी भाँति ही हैं। गाँव इन प्रश्नोंसे अछूते और अप्रभावित रहते हैं। इसलिए आप मुझे रात-दिन केवल खादीके बारेमें बात करते, केवल चरखेका स्वप्न देखते, और देशमें होनेवाले इन उथल-पुथलोंके बावजूद अपने उद्देश्यपर अटल और दृढ़ देखते हैं। काश मैं हर ब्राह्मण, हर अब्राह्मण, हर मुसलमानको इस बातपर कायल कर सकता कि जिन प्रश्नोंका मैंने उल्लेख किया है, उनके बारेमें उसके विचार कुछ भी क्यों न हों, लेकिन आपमें से हरेकका प्रथम कर्त्तव्य मेहनतकश जन-साधारणके प्रति है।

मेरे नाडार[१] मित्रोंने अपने अभिनन्दनपत्रमें बताया है कि हालांकि उन्हें चरखे के सन्देशमें विश्वास है, लेकिन मुझे जो धन दिया जा रहा है उसके समुचित वितरण और उपयोगके बारेमें उन्हें गम्भीर शंकाएँ हैं। वे मुझे बताते हैं कि उन्होंने एक तमिल अखबारमें पढ़ा है कि कुप्रबन्धके कारण या भगवान जाने किन कारणोंसे, करीब एक लाखसे ऊपर रुपये बरबाद हो गये। अपने मानपत्रमें इस बातका उल्लेख करनेके लिए मैं उनको सचमुच धन्यवाद देता हूँ। और जिस संगठनके जरिये मैं खादीका प्रचार कार्य कर रहा हूँ और जिसके जरिये इन रुपयोंका उपयोग किया जा रहा है, यदि वह संगठन रुपयोंके उपयोगके बारेमें असावधान या अक्षम पाया जाता है तो मैं स्वीकार करता हूँ कि इस कार्यके लिए एक पाई भी देना व्यर्थ है और हानिकारक भी; और मुझे खुशी है कि इन रुपयोंके उचित वितरणमें शंका व्यक्त करते हुए उन्होंने थैलीके लिए चन्दा देनेसे इनकार कर दिया है। लेकिन मुझे इन मित्रोंको और आप सब उपस्थित लोगोंको यह सूचित कर सकनेमें खुशी है कि रुपयोंका कोई अपव्यय नहीं हुआ है। यह भी याद रखिए कि अखिल भारतीय चरखा संघ केवल तीन वर्ष पहले ही स्थापित हुआ है। इससे पूर्व खादीका काम अन्य कामोंके साथ-साथ कांग्रेसके संगठनों द्वारा किया जाता था। लेकिन इसके बावजूद एक लाख रुपयेकी कोई गड़बड़ी नहीं हुई है। निःसन्देह अन्य संगठनोंकी तरह इस संगठनमें भी बहियोंपर ऐसी बहुतसी लेनदारियाँ चढ़ी हुई हैं, जिनके वसूल होनेकी उम्मीद कम ही है। हमें सभी प्रकारके आदमियोंसे पाला पड़ता है। सभी प्रकारकी सावधानियाँ बरतने और मुचलके लेनेके बावजूद, कुछ लोग बेईमान सिद्ध होते हैं। और यदि आप एक भी पाई देनेसे पहले यह अपेक्षा करें कि खादी संगठन शत-प्रतिशत सफल बनकर दिखाये तो मुझे भय है कि संगठनको बन्द कर देना पड़ेगा। मुझे अपने ३५ वर्षके सार्वजनिक जीवनमें कई संगठनोंका नियन्त्रण और संचालन करनेका सौभाग्य प्राप्त हुआ है। लेकिन मैं आपसे कह दूं कि बिना कोई हानि उठाये एक भी संगठनका संचालन करना मेरे लिए सम्भव नहीं हुआ है। लगभग बीस वर्षकी वकालतके दौरान में हजारों

  1. १. तमिलनाडुकी एक जाति ।