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भाषण : पागानेरीकी सार्वजनिक सभामें

बेटियोंको छोटी उम्रमें दूसरेके हवाले कर देना, और उन्हें घोर अज्ञानमें रखना अत्यन्त स्वाभाविक चीज है। चरखा इन घोर अन्यायोंको दूर करनेके लिए है। चरखा स्त्रीको वह स्थान प्रदान करता है जिसकी वह अधिकारिणी है। वह स्त्री और पुरुष दोनोंकी विवेक-बुद्धिको जगाता है, और भारतकी स्त्रियोंके प्रति अपने कर्त्तव्यको समझनेमें पुरुषोंकी मदद करता है। यदि मेरे शब्द मेरे चारों ओर एकत्र आप भाई-बहनोंके हृदयमें उतरे हों तो आप तुरन्त समझ जायेंगे कि जिस उद्देश्यकी खातिर मुझे ये थैलियाँ मिली हैं उस उद्देश्यके लिए मैं इन्हें पर्याप्त क्यों नहीं मानता। मैं चाहता हूँ कि आप अपने दिमागसे यह खयाल निकाल दें कि मैं कोई ऐसा महात्मा हूँ जिसे ईश्वरने शापके रूपमें आपके ऊपर थोप दिया है। लेकिन मैं चाहता हूँ कि आप इस तथ्यको उसके पूरे अर्थके साथ समझ लें कि मैं दरिद्रनारायणके एक आत्मनियुक्त विनम्र सेवक और प्रतिनिधिके रूपमें आपके सामने आया हूँ। मैं चाहता हूँ कि आप समझ लें कि आपने मुझे जो-कुछ दिया है वह मेरे अहं और मेरी महत्वाकांक्षाकी तुष्टिके लिए नहीं दिया है, बल्कि उस दरिद्रनारायणका तन ढँकने और पेट भरनेके लिए दिया है जो प्रतिदिन सुबह-शाम, वक्त-बेवक्त आपके दरवाजेको खटखटाता रहता है। मैं आपको उन भूख-पीड़ित करोड़ों लोगोंके प्रति आपके कर्त्तव्यका ज्ञान कराने आया हूँ जिनके शोषणपर और जिनकी मेहनतपर मैं और आप रह रहे हैं। जबतक आप स्त्री और पुरुष दोनों खद्दर और केवल खद्दर ही नहीं पहनते तबतक मेरे निकट आपके रुपयों, आपके आभूषणों, आपकी अँगूठियों और आपके कण्ठहारोंका भी कोई उपयोग नहीं है। चरखेके लिए थैलियाँ इकट्ठा करनेका काम तो एक स्वल्पकालिक और संक्रमणकालीन योजना है। जब भारतमें हर स्त्री और पुरुष खादीका उसी सहज रूपसे इस्तेमाल करने लगेगा जिस प्रकार वह भारतके मैदानोंमें उत्पन्न होनेवाले अनाजका उपयोग करता है तब इन चन्दोंकी उसी प्रकार कोई जरूरत नहीं रह जायेगी जिस प्रकार भारतमें चावल और गेहूँकी खेतीके प्रचारकार्यके लिए चंदेकी कोई जरूरत नहीं है। यह आपके हाथकी बात है कि आप इस संक्रमणकालकी अवधि खादीको अपनाकर जितनी चाहें उतनी कम कर दें; और हमारे वातावरणको चरखेकी भावनासे आप्लावित कर देनके लिए मेरे सामने बैठी आप सभी बहनोंके लिए जरूरी है कि आप चरखेको अपना लें, और यदि आप अपना लें तो चरखा आपकी पवित्रता और स्वतन्त्रताका प्रतीक बन सकता है। साथ ही चरखेको एक यज्ञके रूपमें अपनाना पुरुषोंके लिए भी उतना ही जरूरी है। मैं खादीको तबतक सस्ता नहीं बना सकता और तबतक लोकप्रिय नहीं बना सकता जबतक मेरे पास कताई-कुशल लोगोंकी एक ऐसी फौज नहीं हो जो गाँव-गाँवमें पहुँच सके और आवश्यक प्रशिक्षण देकर तथा संगठन कार्य करके चरखेको पुनः प्रतिष्ठित कर सके।

और अब मैं उन सामाजिक सुधारोंके बारेमें फिर वही बात दोहराऊँगा जो मैंने तमिलनाडु में अन्य स्थानोंपर बार-बार कही है। ये सुधार हमारे हाथों होनेकी प्रतीक्षा कर रहे हैं। पुरुषोंका जीवन शुद्ध बनना चाहिए । पुरुषका अपनी पत्नीके प्रति निष्ठावान होना उतना ही पवित्र कर्त्तव्य है जितना कि पत्नीका पतिके प्रति निष्ठावान