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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जेवरोंका बहिष्कार करें। याद रखिए कि आपका सौन्दर्य आपके चरित्र में निहित है, आपके जेवरों या आपकी पोशाकमें नहीं। आपके ये भद्दे और महँगे जेवर वास्तवमें आपके किसी कामके नहीं हैं। या तो इन्हें गला दीजिए या इन्हें बेचकर रुपया बचाइए या फिर इन्हें दरिद्रनारायणकी सेवाके लिए मुझ-जैसे किसी व्यक्तिको सौंप दीजिए। आपने खादी भी नहीं पहन रखी है। आप सबको चाहिए कि आप बिलकुल निर्मल हृदया सीताकी तरह बनें और सादी खादी तथा सादे जेवर पहनें।

[ अंग्रेजीसे ]
हिन्दू, २९-९-१९२७

३३. भाषण : पागानेरीकी सार्वजनिक सभामें

२७ सितम्बर, १९२७

मुझे इस सभामें इतनी सारी बहनोंको, लगभग जितने पुरुष हैं, उतनी ही संख्या में उपस्थित देखकर बहुत खुशी है। जैसा कि मैंने कराइकुडीकी महिलाओंकी सभामें या अन्यत्र बहनोंसे कहा है, आपने जिस आन्दोलनके लिए ये थैलियाँ दी हैं वह बुनियादी तौरपर भारतीय स्त्रियोंकी स्वतन्त्रताका आन्दोलन है। भारतकी स्वतन्त्रता तबतक एक असम्भव चीज रहेगी जबतक आपकी बेटियाँ आपके बेटोंके साथ स्वतन्त्रताकी लड़ाईमें कन्धेसे-कन्धा मिलाकर नहीं खड़ी होंगी, और भारतकी करोड़ों बेटियोंके लिए इस तरहके बराबरीके दर्जेपर पुरुषोंके साथ सहयोग करना तबतक सम्भव नहीं है जबतक उन्हें अपनी शक्तिका ठीक-ठीक भान नहीं होगा। भारतकी करोड़ों झोंपड़ियोंमें चरखा जिस दिन अपने गरिमामय स्थानपर अपने फलितार्थी सहित पुन: प्रतिष्ठित हो जायेगा उसी दिन स्त्रियोंको भारतके पुनरुद्धारमें अपने महत्त्वपूर्ण स्थान और अपनी शक्तिका ज्ञान हो जायेगा। क्योंकि तब वे पुरुषोंसे कह सकेंगी : "आप लोग अपने भोजन और वस्त्रके लिए जितना स्वयं अपने ऊपर निर्भर करते हैं उतना ही हमपर भी निर्भर करते हैं। हम आपका भोजन पकाती हैं, और हम वह सूत कातती हैं जिससे खादी तैयार होती है", तब नारीको वह गौरवमय स्थिति प्राप्त हो जायेगी जो उसका जन्मसिद्ध अधिकार है, और जिससे हम पुरुषोंने -- अपनी नारी-जातिके प्रति गद्दारी करनेवाले हम पुरुषोंने उसे वंचित कर दिया है। कारण, हमने अपनी मूढ़ता और अज्ञानवश अपनी हर कुटियासे चरखेको हटा दिया, और पश्चिमसे आनेवाले महीन सुन्दर कपड़ोंके मोहमें पड़ गये। हमें स्वर्णमुद्राओं और रुपयोंका जो लालच दिखाया गया उससे हम लोभमें पड़ गये, और चाहे या अनचाहे, जो भी हो, हमने अपनी बेटियों और बहनों और पत्नियोंको घोर अज्ञानके अन्धकारमें रखनेका षड्यंत्र किया और जिस शिक्षाकी वे अधिकारिणी थीं उससे उन्हें वंचित किया। अपनी अज्ञानताके वश होकर हमने अपनी बेटियोंको उस अवस्थामें ही ब्याह दिया जब उनकी उम्र अभी हमारे साथ बहन और भाईकी तरह खेलनेकी थी। यह प्रथा बहुत दिनोंसे लगातार चलती आयी है; इसलिए आप स्वयं ऐसा मानने लगी कि तथाकथित ब्याह करके अपनी