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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

निखिल भी भव्य बालक प्रतीत होता है। उसको बहोत शारीरिक परिश्रम उठाने मत दीजीये।

ईश्वर आपको ज्ञान ओर शांति दे।

बापुके आशीर्वाद

जी० एन० १६५० की फोटो-नकलसे।

३१. पत्र : आश्रमकी बहनोंको

आश्विन सुदी १ [२६ सितम्बर १९२७ ]

[१]

बहनो,

आजका पत्र तुम्हें रूखा नहीं लगेगा। मेरे मनमें जो बातें घूम रही थीं उन्हें लिखनेकी मैं हिम्मत नहीं करता था और सयानपनकी बातें लिखता रहता था। और जैसे मेरे पत्र थे वैसे ही तुम्हारे। वे जवाब ऐसे थे जो सयाने और व्यवहार-नीतिमें कुशल व्यक्तियोंको शोभा दे सकते हैं किन्तु जो हम साधारण स्त्री-पुरुषोंको शोभा नहीं देते। वे जवाब नहीं, बल्कि सरकारी पावतीकी तरह कोरी पावती-मात्र थे।

आज तो मैं तुम्हें वहाँ होनेवाले लड़ाई-झगड़ेके बारेमें लिखना चाहता हूँ । तुम्हारा एक-दूसरेमें विश्वास नहीं रहा, एक-दूसरेके प्रति आदर नहीं रहा और छोटी- छोटी खटपट होती रहती हैं। यह हम दोनों जानते हैं। फिर भी उसके बारेमें लिखनेकी किसीकी हिम्मत नहीं होती थी। मुझे लगा कि इस नासूरको मुझे फोड़ना ही चाहिए। तुममें लड़ाई-झगड़े क्यों होते हैं ? इस द्वेषभावका कारण कहाँ है ? दोष किसका है ? इन सब बातोंकी तुम जाँच करना ।

धर्म तो यह कहता है कि जबतक मनुष्य अपने मैलको जमा करता है तबतक वह अपवित्र है; ईश्वरके पास खड़ा होने लायक नहीं है। इसलिए तुम्हारा पहला काम तो यह है कि जिसमें मैल हो, वह उसे प्रकट करके धो डाले। इस पत्रका कारण मणिबहन (पटेल) का अनायास लिखा हुआ पुर्जा है। उसके हिस्सेमें संकट- निवारणका काम आ गया, इसलिए वह भाग निकली। मगर उसने एक पुजेंमें अपना सारा संताप उँडेल दिया। आश्रममें जो फूट फैली हुई है, उसे वह सह न सकी। देखो, चेतो और आश्रमको सुशोभित करो।

इस पत्रको पढ़कर जिस बहनको मुझे अलग पत्र लिखनेकी इच्छा हो वह अलगसे लिखे।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती (जी० एन० ३६६८) की फोटो-नकलसे।
  1. १. वर्षका निश्चय पत्रमें संकट-निवारण कार्य तथा आश्रमकी बहनकि आपसी लड़ाई-झगड़कि उल्लेखके आधारपर किया गया है।