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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

करनेका अनुरोध करता हूँ जो मैंने कहा है। आप जानते हैं कि यदि आप वैसा करेंगे तो उससे आपका भला होगा, मेरा भला होगा और सारे भारतका भला होगा । आपपर ईश्वर अपनी कृपा रखे और आपको शक्ति दे कि आप मेरा सन्देश समझ सकें और उसके अनुसार कार्य कर सकें।

[ अंग्रेजीसे ]
हिन्दू, २७-९-१९२७

२८. सन्देश : 'न्यू इंडिया' को

कराइकुडी
२६ सितम्बर, १९२७

डा० एनी बेसेंटको जन्म दिवसकी शुभकामनाएँ देते हुए मैं कह सकता हूँ कि मैं १८८९-९० में पहली बार उनका ऋणी हुआ था।[१] तबसे अबतक वह ऋण कई गुना बढ़ गया है। उस ऋणसे मुक्त होनेकी शक्ति देनेकी मेरी प्रार्थना निर्दय ईश्वरने अभीतक नहीं सुनी है।

[ अंग्रेजी से ]
हिन्दू, २९-९-१९२७

२९. पत्र : सतीशचन्द्र दासगुप्तको

२६ सितम्बर, १९२७

प्रिय सतीशबाबू,

आपका पत्र मिला। एक स्थानीय विशेषज्ञके[२] लिए प्रतिष्ठानवाले सफरी चरखेके बारेमें महादेवने आपको अवश्य लिखा होगा। वह [विशेषज्ञ ] बहुत बारीक कातते हैं। उन्होंने मुझे स्वयं तैयार किया हुआ बारीक मलमलका एक टुकड़ा भेंट किया। यह मलमल लगभग वैसा ही था जैसा कि जोगेश बाबूका। मैंने उसे एक स्थानीय चेट्टीको[३] १००० रुपयेमें बेच दिया। आपको चरखा इसी विशेषज्ञको भेजना है। कृपया भाड़ा खर्च भुगतान कर दीजिएगा और सारी कीमत मेरी सूचनाके अनुसार अ० मा० च० सं० के जिम्मे[४] डाल दीजिएगा।

  1. १. गांधीजीका श्रीमती बेसेंटसे पहला परिचय उनकी पुस्तक हाऊ आई बिकेम ए थियोसॉफिस्ट पढ़ कर हुआ था। देखिए आत्मकथा, भाग १, अध्याय २० ।
  2. २. चोकलिंगम् चेट्टियार; देखिए " भाषण: देवकोट्टामें ५, २४-९-१९२७।
  3. ३. पण्मुखम् चेट्टिपार; देखिए “ भाषण : सार्वजनिक सभा, कराइकुडीमें ", २५-९-१९२७ ।
  4. ४. अखिल भारतीय चरखा संघ ।