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भाषण : सार्वजनिक सभा, कराइकुडीमें

और चरखेकी ही महिमा है कि इन ५० हजार बहनों द्वारा काते गये सूतसे करीब पाँच हजार बुनकर कपड़ा तैयार करते हैं। इन कतैयों और बुनकरोंके अलावा खादीके लिए आवश्यक विशेष धुलाई करनेवालों, रँगनेवालों और छपाई करनेवालोंका एक वर्ग और तैयार हुआ है। छपाई और रँगाईकी सुन्दर कला, जो मसूलीपट्टममें और अन्यत्र समाप्त हो गई थी, फिरसे जीवित कर दी गई है और उसे एक सम्मानजनक दर्जा प्रदान किया गया है। यही वह संस्था है जिसके जरिये इन सभी काम करनेवालोंमें सात लाखसे अधिक रुपये वितरित किये गये । और अगर आपके लिए इसका कुछ महत्त्व हो तो मैं आपको यह भी बता दूं कि इन कारीगरों में से अधिकांश अब्राह्मण हैं। इस संस्थाका संचालन और नियन्त्रण ९ व्यक्तियोंकी एक परिषद करती है, और अगर आप जानना चाहते हों तो यह भी जान लीजिए कि इन व्यक्तियोंमें से भी अधिकांश अब्राह्मण हैं। इस संस्थाका अध्यक्ष एक अब्राह्मण है, जिसे गलतीसे महात्मा कहा जाता है। (हँसी) इसका कोषाध्यक्ष भी एक अब्राह्मण है, और कोषाध्यक्षको हैसियतसे उसके जैसा गुणी व्यक्ति संसारमें कहीं नहीं है। इसका मन्त्री भी अब्राह्मण है और वह बम्बईके एक प्रतिष्ठित बैंक-मालिकका पुत्र है। यह संस्था करीब १००० मध्यमवर्गीय लोगोंको काम देती है, जिनमें से अधिकांश अब्राह्मण हैं। इस संस्थाके पास कुछ ऐसे कार्यकर्ता हैं, जो न केवल अवैतनिक कार्यकर्ता हैं, बल्कि सचमुच इस संस्थाका पोषण करते हैं। केन्द्रीय तथा प्रान्तीय संगठनोंके सभी हिसाबकी जाँच समय-समयपर लेखा परीक्षक द्वारा कराई जाती है, और इस हिसाबको दोस्त-दुश्मन, चन्दा देनेवाले और न देनेवाले, सभी देख सकते हैं। इस संस्थाका कोई भी अधिकारी १७५ रुपये प्रतिमाह से अधिक वेतन नहीं पाता । और न ही कोई स्त्री या पुरुष इस संस्थाका तबतक सदस्य बन सकता है, जबतक कि वह आत्मत्यागकी भावनासे अभिभूत न हो। मैने स्त्रियोंका उल्लेख किया, इसपर से मुझे आपको यह सूचित करते खुशी होती है कि भारतकी कई प्रतिष्ठित पुत्रियाँ हैं जो बिना कुछ लिये खादीके लिए कार्य कर रही हैं। उदाहरणके लिए मैं भारतके पितामहकी[१] तीन पौत्रियों और महान पेटिट परिवार- की बह्नोंका उल्लेख करना चाहूँगा। यह संस्था करीब २० लाख रुपयेकी पूंजीसे काम कर रही है। लेकिन भले ही ये आँकड़े संख्या में आपको बहुत बड़े प्रतीत होते हों, किन्तु आपको और मुझे इन आँकड़ोंके जिस सीमातक पहुँचनेकी कामना करनी चाहिए, उसकी तुलनामें ये कुछ नहीं हैं। यदि सारे भारतमें खादीकी भावना फैल जाये तो हम १५०० नहीं, बल्कि ७ लाख गाँवोंकी, और ५० हजार कतैयोंकी नहीं, बल्कि दस करोड़ कतैयोंकी सेवा करेंगे। यही वह काम है, जिसके लिए मैं चेट्टिनाडके लोगोंसे उनके धनका कुछ थोड़ा-सा भाग नहीं, बल्कि काफी बड़ा भाग माँगता हूँ । अब आप यह भी समझ गये होंगे कि इस सुन्दर खादीके कपड़ेका मूल्य १००० रुपये निर्धारित करते समय मैंने इसका मूल्य कम ही आँका है, ज्यादा नहीं ।

आपके बीच चार दिनके अपने सुखद निवासमें मैं जिन कुछ अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थानीय विषयोंपर चर्चा करता रहा हूँ, अब मैं सरसरी तौरपर उन्हें फिर दोहराऊँगा ।

  1. १. दादाभाई नौरोजी ।