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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

बालकोंके लिए सत्रह रुपया देना भी सरल नहीं था। फिर भी आप अपनी खुशीसे दरिद्रनारायणके लिए जो कुछ दे सके हैं, मैं उसके लिए आपका आभारी हूँ। मैं अपनी बातकी शुरुआत उस प्रस्तावको दुहराते हुए करना चाहता हूँ, जो मैंने कल रात रखा था। मैं आपको हस्तकलाका यह सुन्दर नमुना, जो आपके ही यहाँ तैयार किया गया है, दिखाना चाहता हूँ। जिस सुतसे यह मलमल, जिसे मैं खादी कहता हूँ, बनी हुई हैं वह इसी स्थानके श्री चोकलिंगम द्वारा काता गया है। जैसे बारीक सूतसे यह खादी बुनी गई है, वैसा सूत कातनेके लिए उन्होंने रुईको किन विभिन्न विधियोंसे तैयार किया, यह मैंने अपनी आँखों देखा है और अगर आपने उनकी हस्तकला देखी होती तो आपको भी मेरी तरह उनसे ईर्ष्या होती और मेरी ही तरह उनकी कलापर आपको गर्व भी होता। इतनी बारीक मलमलका मैं निजी तौरपर कोई उपयोग नहीं कर सकता। अतः यदि मैं आपके मनमें स्थानीय कला और देशके प्रति प्रेम जगानेमें विफल हुआ तो मैं इसे ले जाऊँगा और अखिल भारतीय चरखा संघके संग्रहा- लयमें प्रदर्शनार्थ रख दूंगा। लेकिन मैं सचमुच चाहता हूँ कि यह कपड़ा आप लोगोंके पास ही रहे। अगर आप इसे रखना चाहेंगे तो आपको इसका बहुत ऊँचा दाम देना पड़ेगा। दुनियामें सभी जगह कला-वस्तुओंकी कीमत ज्यादा होती है, और मैंने इस कपड़ेका मूल्य १,००० रुपये निर्धारित किया है। लेकिन आप पूछ सकते हैं कि इस कपड़ेमें कलात्मक मूल्य-जैसा क्या है, अथवा दूसरे शब्दोंमें अगर आप चाहें तो पूछ सकते हैं कि खादीको मैं इतना मूल्यवान क्यों मानता हूँ। एक सज्जनने, जो आपके बीच वर्षों रह चुके हैं, मुझे बताया था कि चेट्टिनाडमें ऐसे बहुत से लोग हैं जो चरखेका सन्देश नहीं समझते और न वे यही समझते हैं कि इन तमाम थैलियोंकी रकमोंका इस्तेमाल किस प्रकार किया जायेगा। मैं कुछ शब्द चरखेके सन्देशको स्पष्ट करनेके लिए कहूँगा । चरखेका उद्देश्य उन लाखों क्षुधा-पीड़ित स्त्री-पुरुषोंके लिए काम जुटाना है जो इस देशके सात लाख गाँवोंमें रहते हैं। भारतके बारेमें कुछ भी जानकारी रखनेवाले हर व्यक्तिने कहा है कि इन लोगोंके पास सालमें करीब छः महीने कोई काम नहीं होता, और सिवा चरखेके इन करोड़ों आदमियोंके लिए कोई काम मुहैया करना असम्भव है। चरखेके जरिये हम सारे भारतका तन ढँकने लायक कपड़ा तैयार कर सकते हैं। और मैं यह कहनेका साहस करता हूँ कि इन करोड़ों क्षुधात मानवोंके हाथोंसे तैयार की गई प्रत्येक वस्तु निश्चित तौरपर इस मलमल-जैसी ही एक कला-कृति है। सच्ची और जीवन्त कला वही है जिसका हमारे जीवनके साथ सम्बन्ध हो । सच्ची कला जीवनको पतित नहीं करती, बल्कि जीवनका सम्बल होती है, उसे उत्कृष्ट बनाती है। अब आप समझ गये होंगे कि मैं खादीको इतना मूल्यवान क्यों मानता हूँ। लेकिन यदि आप और मैं खादी नहीं पहनते तो इसका कोई मूल्य नहीं होगा।

अब मैं आपको उस संस्थाके बारेमें कुछ बताऊँगा जो खादी तैयार करती और बेचती है। देशमें कमसे-कम १,५०० गाँव हैं, जिनकी यह संस्था सहायता कर रही है। इन १,५०० गाँवोंमें ५० हजारसे भी अधिक बहनें चरखेका लाभ उठा रही हैं,