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२६. पत्र: सुरेन्द्रको

[२५ सितम्बर, १९२७ ]

[१]

चि० सुरेन्द्र,

तुम्हारा पत्र मिला। वहाँ जो विचित्र अनुभव हों उनकी खबर देते रहना। तुम्हारी सुस्तीके बारेमें वसुमती बहनने लिखा था। मैं उससे चिन्तित नहीं हुआ यद्यपि यह सुनकर आश्चर्य तो हुआ था ।

गाँवोंमें किस तरह जाते हो ? प्रत्येक अकेला ही जाता है या किसी साथी के साथ ? लोगोंके मनपर बाढ़का[२] असर अब भी बाकी है या निःशेष हो गया ? बाढ़के दिनोंमें सब लोग हिल-मिलकर रह रहे थे। क्या ऐसा मालूम होता है कि यह स्थिति तो स्वप्नकी तरह आयी और चली गई ? लोग स्वयं अपनी भी कुछ मदद करते हैं या नहीं ? मदद लेनेवाले सामान्यतः ईमानदार तो होते हैं न ?

बालकृष्णका क्या हाल है ? छोटेलालने फिर मौन धारण कर लिया है।

मैं सानन्द हूँ, यद्यपि आजकल ऐसा तो बहुत-कुछ हो रहा है जिससे मनको दुःख होता है और इनमें से कुछ घटनाएँ तो ऐसी भी हैं जिनका आघात काफी गहरा है। किन्तु प्रस्तुत युद्ध ऐसा है जिसमें मुमुक्षु सिपाहीकी परीक्षा भी हो रही है, और वह निखर भी रहा है, इसलिए मुझे विश्वास है कि ये सब घाव भर जायेंगे। किन्तु न भी भरें तो क्या ? 'गीता' यह आश्वासन देती है न कि इस रणक्षेत्रमें काम आनेवालेका तो कल्याण ही होता है ?

बापूके आशीर्वाद

गुजराती (एस० एन० ९४१६) की फोटो-नकलसे।

२७. भाषण : सार्वजनिक सभा, कराइकुडी में

२५ सितम्बर, १९२७

मित्रो,

आपने जो अभिनन्दनपत्र और विभिन्न थैलियाँ भेंट की हैं, उनके लिए मैं आपको धन्यवाद देता हूँ। मुख्य थैलीमें ४,००० से अधिक रुपये हैं। यह अच्छी रकम है, लेकिन चेट्टिनाडके लोगोंके लिहाजसे बहुत अच्छी नहीं है, और इसकी तुलना आदिद्रविड़ बालकों द्वारा दी गई १७ रुपयेकी थैलीसे करनेपर तो यह निश्चय ही बहुत अच्छी रकम नहीं है। आप लोग आसानीसे इसकी चौगुनी रकम दे सकते हैं, जबकि आदिद्रविड़

  1. १. महादेव देसाईको हस्तलिखित डायरीके अनुसार ।
  2. २. गुजरात में।