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भाषण : देवकोट्टामें

श्लोकपर श्लोक बोलनेवाला हर व्यक्ति संत पुरुष नहीं होता । सन्त पुरुष वह है जो अपनेको ससारके किसी भी प्राणीसे श्रेष्ठ नहीं समझता और जिसने संसारके सभी सुखोंका त्याग कर दिया है। वास्तव में आज कलियुगमें हमें सन्त पुरुष कठिनाईसे मिलते हैं। इसलिए हमारी यह दोहरी जिम्मेदारी हो जाती है कि अपने बच्चोंको समुचित शिक्षा दें ताकि वे भले और बुरेमें भेद कर सकें। और आप लोगोंसे जो इतने अमीर हैं और शिक्षाकी उम्र पार कर चुके हैं, मैं वही कहना चाहूँगा जो मैं पिछले तीन दिनोंसे और जगहोंपर कहता रहा हूँ। वह यह है कि आप चाहे जो भी करें, लेकिन अपने जीवनकी पवित्रतापर आँच न आने दें। मैंने तरह-तरहकी कहा- नियाँ सुनी है लेकिन मैं आशा करता हूँ कि उनमें काफी अत्युक्ति है। तथापि संसा रके अनुभवके आधारपर आम तौरसे यह कहा जा सकता है कि सौनेका सद्गुणोंसे बैर होता है। लेकिन संसारका ऐसा दुखद अनुभव होनेके बावजूद यह नियम अटल है, ऐसा नहीं कहा जा सकता। हमारे सामने महाराजा जनकका प्रसिद्ध उदाहरण है जिनके पास एक महान राजाके नाते यद्यपि अपार धन-सम्पत्ति और असीम शक्ति थी, तथापि वे अपने समयके शुद्धतम व्यक्तियोंमें से थे। और हमारे ही युगमें में अपने व्यक्तिगत अनुभवके आधारपर उदाहरण दे सकता हूँ और आपको बता सकता हूँ कि मैं ऐसे कई घनी लोगोंको जानता हूँ जिन्हें सीधा-सादा और शुद्ध जीवन व्यतीत करनेमें तनिक भी कठिनाई नहीं है। उन थोड़ेसे लोगोंके लिए जो सम्भव है वह आपमें से प्रत्येकके लिए सम्भव है। मैं चाहता हूँ कि मेरे शब्दोंको आपके हृदयमें स्थायी जगह मिले। मैं जानता हूँ कि इससे आपको, और जिस समाजमें आप रहते हैं उसको, कितना लाभ होगा।

अब मुझे वही करना है जो मैं हर सभामें करता हूँ। सभा विसर्जित होनेसे पहले स्वयंसेवक आप लोगोंके पास जाते हैं और जिन लोगोंने कोषमें पैसा नहीं दिया है, या जो मेरा भाषण सुनने के बाद इस निष्कर्षपर पहुँचते हैं कि उन्होंने काफी चन्दा नहीं दिया है, उनसे चन्दा जमा करते हैं। यदि सभामें ऐसे स्त्री-पुरुष हों जिनका खादीमें विश्वास है तो मैं उन्हें वैसा करनेका मौका देना चाहता हूँ ।

जब स्वयंसेवक लोग चन्दा जमा कर रहे थे उस समय महात्माजीने सभाकेआरम्भमें रखा अपना प्रस्ताव दोहराया और पूछा कि क्या कोई मित्र हैं जो खादीके कपड़ेका नीलाम करनेपर उसे निर्धारित मूल्यपर खरीदना चाहेंगे। इसका कोई उत्तर न मिलनंपर महात्माजीने कहा कि खादीके उस टुकड़ेको प्रदर्शनार्थ अखिल भारतीय चरखा संघके पास भेज दिया जायेगा।[१] अन्तमें महात्माजीने कहा :

अब एक-दो शब्द मैं छात्रोंसे कहूँगा। मुझे उन्हें नहीं भूलना चाहिए। उन्होंने अपने अभिनन्दनपत्रमें मुझे बताया है कि वे आगेसे कताईकी ओर ज्यादा ध्यान देंगे, और जिन्होंने खादीको नहीं अपनाया है वे आगेसे खादीको अपनायेंगे। मैं उनके इस निश्चयके लिए उन्हें बधाई देता हूँ और ईश्वरसे प्रार्थना करता हूँ कि वह उन्हें अपने संकल्पपर अमल करनेकी शक्ति दे ।

[ अंग्रेजीसे ]
हिन्दू, २६-९-२९२७
  1. १. अगले दिन कराइकुडीमें षण्मुखम् चेट्टिपारने १००१ रुपये में इस कपड़े को खरीद लिया । ३५-३