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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

लेकिन कई और बातें हैं जिनकी ओर मैं आपका ध्यान दिलाना चाहूँगा। मैं आपसे यह कहनेका साहस करता हूँ कि हालाँकि आप अपने धनका प्रचुर उपयोग करते प्रतीत होते हैं, लेकिन उसका बुद्धिमत्तापूर्ण उपयोग नहीं कर रहे हैं। आपने विशाल अट्टालिकाएँ खड़ी कर ली हैं, लेकिन आपने अपने आसपासकी चीजोंकी ओर ध्यान नहीं दिया है। इसलिए मैं चाहूँगा कि आप न केवल अपने लिए बल्कि अपने बीच रहनेवाले लोगोंके पीनेके लिए शुद्धतम पानीकी व्यवस्था करें। आपकी सड़कें बिलकुल दुरुस्त और अच्छी होनी चाहिए। आपके तालाब स्वच्छ और मीठी सुवास- वाले होने चाहिए और उनमें स्वच्छ और निर्मल जल भरा होना चाहिए। आपके यहाँ गन्दे पानीकी निकास-व्यवस्था बिलकुल चुस्त और दुरुस्त होनी चाहिए। आप विश्वास ही नहीं करेंगे कि ये सब चीजें इतनी सरल हैं, और आप इनकी ओर यदि पूरे मनसे ध्यान देंगे तो देखेंगे कि इनपर बहुत थोड़ा पैसा खर्च होगा जो आपको खलेगा नहीं। अगर आपको यह सब करना हो तो आपको इसके लिए विशेषज्ञोंकी सलाह लेनी चाहिए। लेकिन इसमें निजी रुचियों और निजी सुविधाओंका थोड़ा-बहुत त्याग जरूरी है। इसके लिए सामुदायिक जीवन केवल अपने ही लिए नहीं, बल्कि देशके लिए, बितानेकी इच्छाका होना जरूरी है। इसके लिए यह भी जरूरी है कि आपके मनमें अपने गरीबसे गरीब पड़ोसीके लिए भी बन्धुत्वकी भावना हो। अपने मनके रुझानको इस दिशामें मोड़नेके साथ ही आप देखेंगे कि उक्त कार्योंको सम्पन्न करनेमें बहुत ही कम प्रयत्न, और उससे भी कम पैसेको जरूरत पड़ेगी, और मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि अपनी कोशिशोंका आपको पर्याप्त फल मिलेगा।

लेकिन आज दिनमें मुझे यह जानकर आश्चर्य हुआ कि आप अपने बच्चोंको समुचित और ढंगकी शिक्षा भी नहीं देते। मुझे बताया गया कि जीवनमें आपकी एकमात्र महत्त्वाकांक्षा होती है उन्हें कच्ची आयुमें ही धन पैदा करनेवाली मशीन बना देना। यह बात ठीक नहीं है। उन्हें अपने व्यापारका योग्य उत्तराधिकारी आप शौकसे बनाइए, लेकिन इससे पहले कि वे जिन्दगीकी तूफानी राहमें प्रवेश करें, उन्हें आप अपने संस्कृति रूपी ज्ञानका कुछ परिचय पाने दीजिए, उनके चरित्रका निर्माण हो जाने दीजिए और उन्हें हमारे इतिहास तथा देशका कुछ ज्ञान हो जाने दीजिए। मुझे बताया गया कि इस समय हालत यह है कि शास्त्रोंका ज्ञान होनेका झूठा दम्भ करने- वाले कुछ लोग आपको पवित्र शास्त्रोंके नामपर हर तरहके ग्रन्थोंके चक्करमें डालते हैं। लेकिन मैं आपको बता दूं कि चाहे संस्कृतमें हो या तमिलमें, हर श्लोक आवश्यक रूपसे शास्त्र-वचन नहीं है। सच्चे शास्त्रकी मेरी परिभाषा है, चुने हुए शब्दोंमें ऐसी उक्ति जो हमें जीवन प्रदान करे। इसलिए कोई भी धर्मग्रन्थ, भले वह कितना ही पुराना क्यों न बताया जाता हो, यदि हमें विनाशके पथपर ले जानेवाला, और इस कारण सत्य और जीवनके शाश्वत नियमके विपरीत हो, तो वह शास्त्र नहीं हो सकता। इसी- लिए हमें सिखाया गया है कि शास्त्र सचमुच चरित्रवान व्यक्तिके मुंहसे निकलता है, जिसे हम सन्त पुरुष कहते हैं। और याद रखिए, गेरुआ वस्त्र पहननेवाला, मस्तक और सारे शरीरपर टीका-तिलक लगा लेनेवाला, और शास्त्रवचन कहकर [ तोतेकी तरह ]