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२३. भाषण: देवकोट्टामें

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२४ सितम्बर, १९२७

मित्रो,

मैं इन सभी अभिनन्दनपत्रोंके लिए आपको धन्यवाद देता हूँ। मैं निपुण कतैया, श्रीयुत चोकलिंगम् चेट्टियार, को भी धन्यवाद देता हूँ जिन्होंने मुझे रुईके विविध नमूने दिये हैं, जिनसे पता चलता है कि कताईसे पहले रुईको किन-किन प्रक्रियाओंमें से गुजरना पड़ता है। मैं उन्हें अपने कते हुए सूतसे यहींके एक बुनकर द्वारा बुनी खादी भेंट करनेके लिए भी धन्यवाद देता हूँ। मैंने इसे लोगोंके देखनेके लिए रख दिया है। आप खुद यह बारीक खादी देखें; मुझे इसमें कोई सन्देह नहीं है कि इस कपड़ेके पारसे आप मेरा चेहरा देख सकते हैं। मैं इस सभाका आरम्भ आपके सामने एक प्रस्ताव रखते हुए करना चाहता हूँ। इस खादीके कपड़ेको मैं पहन नहीं सकता क्योंकि ऐसा करना मेरी इस घोषणाके विरुद्ध होगा कि मैं अपने लिए उतना ही चाहता हूँ जो हमारे लाखों क्षुधात भाइयोंके मुकाबले ज्यादा न हो। ईश्वर ही जानता है कि सेवा करनेकी तीव्र अभिलाषाकी आड़में मैं किस-किस तरहकी छूट ले लेता हूँ। लेकिन अभी मैं इतना उद्दण्ड नहीं हुआ हूँ जो कहूँ कि इस खादीका इस्तेमाल करके मैं आपकी ज्यादा सेवा कर सकूंगा। इसलिए जो उदार प्रस्ताव में करने जा रहा हूँ, उसे यदि आप स्वीकार करेंगे तो यह खादीका टुकड़ा उस प्रदर्शनीय संग्रहमें चला जायेगा जिसे अखिल भारतीय चरखा संघने इकट्ठा किया है। और यह निश्चय ही संघके संग्रहकी एक अनूठी वस्तु होगा। लेकिन मैं सचमुच चाहूँगा कि आप हस्तकलाके इस सुन्दर नमूनेको एक प्रदर्शनीय वस्तुके रूपमें, अथवा आपमें से कुछ धनी लोगों द्वारा संग्राह्य शोभाकी वस्तुके रूपमें अपने ही बीच रखें। लेकिन यदि आप इसे कीर्तिपदकके रूपमें अपने बीच चाहते हैं तो आपको इसके लिए खिलाड़ियों जैसी उदारताके साथ उपयुक्त कीमत चुकानी पड़ेगी। और ढाकाकी 'शबनम' से थोड़ा ही कम पड़नेवाले इस खादीके टुकड़ेको मैं कितना कीमती मानता हूँ, यह दिखानेके लिए मैं आपको १,००० रुपयेसे कममें यह टुकड़ा नहीं लेने दूंगा। 'शबनम' ढाकाकी उस खादीका कवित्वपूर्ण नाम है जो हमारे पूर्वज वहाँ तैयार किया करते थे। शबनमके अर्थ हैं ओस, और इस मल- मलको 'शबनम' इसलिए कहा जाता था कि इसे फैला देनेपर देखनेवालेको ओस- का धोखा हो जाता था। यह कपड़ा इतना बारीक और इतना सुन्दर होता था। कुछ महीने पहले बंगालमें एक चटर्जी महोदयकी मृत्यु हो गई जिन्होंने करीब-करीब शबनम

  1. १. देवकोट्टाकी इस सभामें गांधीजीको नागरिकों, देवकोट्टा यूनियन बोर्ड और नगरथार श्री मीनाक्षी विद्यालय हाई स्कूलके छात्रों तथा अध्यापकोंको ओरसे अभिनन्दनपत्र दिये गये थे। गांधीजी इन्हींका उत्तर दे रहे थे।