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परिशिष्ट


प्रश्न : जातिका जो रूप हम आज देखते हैं वह अन्तर्जातीय भोज तथा अन्तर्जातीय विवाह के निषेधमें ही सीमित है। तब क्या वर्णको कायम रखनेका अर्थ इन निषेधोंको बरकरार रखना है?
उत्तर : नहीं, बिलकुल नहीं! वर्णके शुद्धतम रूपमें निषेधका कोई स्थान नहीं है।
प्रश्न : क्या इन निषेधोंको छोड़ा जा सकता है?
उत्तर : छोड़ा जा सकता है, और अन्य वर्णों में विवाह करके भी वर्ण संरक्षित रहता है।
प्रश्न : वैसी स्थिति में माँके वर्णपर प्रभाव पड़ेगा।
उत्तर : पत्नी अपने पति के वर्णका पालन करती है।
प्रश्न : जिस वर्ण-धर्मका आपने प्रतिपादन किया है, क्या वह हमारे शास्त्रोंमें भी मिलता है, अथवा वह आपकी अपनी कल्पना है?
उत्तर : मेरी अपनी कल्पना नहीं है। मैंने इसे 'भगवद्गीता' से लिया है।
प्रश्न : 'मनुस्मृति' में जो सिद्धान्त दिया गया है क्या आप उसका समर्थन करते हैं?
उत्तर : सिद्धान्त उसमें है। लेकिन उसका व्यवहृत रूप मुझे पूरी तरह जमता नहीं। इस ग्रन्थके कई अंश हैं जिनपर गम्भीर आपत्तियाँ हो सकती हैं। मैं आशा करता हूँ कि वे बादमें उसमें जोड़ दिये गये थे।
प्रश्न : क्या 'मनुस्मृति' में बहुत-सी अन्यायपूर्ण बातें कही गई हैं?
उत्तर : हाँ, उसमें स्त्रियों और तथाकथित नीच 'जातियों' के बारेमें बहुत अन्यायपूर्ण बातें हैं। इसलिए तथाकथित शास्त्रोंको बहुत सावधानीके साथ पढ़नेकी आवश्यकता है।
प्रश्न : लेकिन आप 'भगवद्गीता' का अनुसरण करते हैं। उसमें कहा गया है कि वर्ण गुण और कर्मके अनुसार होता है। आप इसमें जन्म कहाँसे ले आये?
उत्तर : मैं 'भगवद्गीता' को इसलिए प्रामाणिक मानता हूँ क्योंकि यही एकमात्र पुस्तक है जिसमें मुझे कोई ऐसी बात नहीं मिलती जिसपर वितण्डा हो सके। इसने सिद्धान्त प्रस्तुत कर दिये हैं और इन सिद्धान्तोंको लागू करनेकी बात आपपर छोड़ दी है। 'गीता' यह अवश्य कहती है कि वर्ण गुण और कर्मके अनुसार होता है, लेकिन गुण और कर्म जन्मजात होते हैं। भगवान कृष्णने कहा है कि सभी वर्णोंकी सृष्टि मैंने की है—चातुर्वर्ण्यं मया सृष्टम्—अर्थात् मैं समझता हूँ कि वर्ण धर्म यदि जन्मगत नहीं है तो फिर कुछ भी नहीं है।
प्रश्न : लेकिन वर्ण में श्रेष्ठता जैसी कोई चीज नहीं है?
उत्तर : नहीं, बिल्कुल नहीं, हालाँकि मैं यह अवश्य कहता हूँ कि ब्राह्मण वर्णं अन्य वर्णोंका चरम बिन्दु है, जिस प्रकार सिर शरीरका चरम बिन्दु है। इसके अर्थ हैं श्रेष्ठतर सेवा किन्तु कोई श्रेष्ठतर दर्जा नहीं। श्रेष्ठतर दर्जेका झूठा दावा करते ही वह पैरों तले रौंदने के योग्य हो जाता है।
प्रश्न : 'कुरल' आप जानते हैं। क्या आप जानते हैं कि इस तमिल ग्रंथके रचयिताका कहना है कि जातिका आधार जन्म नहीं है? उसके अनुसार, जन्मके समय सभी प्राणी एक समान हैं।