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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


प्रश्न : अतः तर्ककी दृष्टिसे जितने धन्धे हैं उतने ही वर्ण हैं?
उत्तर : यह आवश्यक नहीं है। विभिन्न धन्धोंको आसानीसे चार मुख्य वर्गोंके अन्तर्गत रखा जा सकता है। ये हैं : अध्यापन, रक्षा, धनका उत्पादन तथा शारीरिक सेवाएँ। जहाँतक संसारका प्रश्न है, प्रधान धन्धा धनका उत्पादन करना है। जिस प्रकार सभी आश्रमोंमें गृहस्थाश्रम प्रधान है, चारों वर्णोंमें वैश्य वर्ण मूल आधार है। यदि धन और सम्पत्ति न हो तो रक्षककी आवश्यकता नहीं होती। प्रथम दो और अन्तिम वर्णोंकी आवश्यकता तीसरे वर्णके कारण ही है। प्रथम वर्णके लोगोंकी संख्या बहुत कम होगी क्योंकि उसमें कठोर अनुशासनकी अपेक्षा की जाती है। दूसरे वर्णके लोगोंकी संख्या एक सुव्यवस्थित समाजमें कम ही होगी और इसी प्रकार चौथे वर्णके लोगोंकी भी कम होगी।
प्रश्न : यदि कोई व्यक्ति ऐसा धन्धा करता है जो जन्मतः उसका नहीं है, तो वह व्यक्ति किस वर्ण का होगा?
उत्तर : हिन्दू विश्वासके अनुसार वह व्यक्ति जिस वर्ण में जन्मा है उसी वर्णका है। किन्तु उस वर्ण-धर्मका पालन न करनेके कारण वह अपने प्रति हिंसा करता है और पतित हो जाता है।
प्रश्न : कोई शूद्र ऐसा काम करता है जो जन्मतः ब्राह्मणका कार्य है। क्या वह पतित हो जाता है?
उत्तर : किसी शूद्रको ज्ञान प्राप्त करनेका उतना ही अधिकार है जितना कि एक ब्राह्मणको, किन्तु यदि वह अध्यापन कार्य द्वारा अपनी आजीविका चलानेका प्रयत्न करता है तो वह अपने पदसे च्युत हो जाता है। प्राचीन कालमें स्वचालित व्यापार-संगठन थे, और किसी धन्धेके सभी सदस्योंकी सहायता करना एक अलिखित कानून था। सौ साल पहले किसी बढ़ईका लड़का वकील बननेकी इच्छा नहीं करता था। आज वह करता है, क्योंकि वह देखता है कि यह धन्धा धन चुरानेका सबसे आसान तरीका है। एक वकील सोचता है कि अपनी बुद्धिके उपयोगके लिए उसे १५००० रुपयेका शुल्क लेना चाहिए और हकीम साहब जैसा एक चिकित्सक सोचता है कि चिकित्सा सम्बन्धी सलाह देनेके लिए उसे १००० रुपये प्रतिदिन लेना चाहिए।
प्रश्न : लेकिन क्या किसी व्यक्तिको अपना मन पसन्द धन्धा नहीं करना चाहिए?
उत्तर : लेकिन किसी व्यक्तिका मनचाहा धन्धा वही होना चाहिए जो उसके बाप-दादोंका धन्धा है, उस धन्धेको चुननेमें कोई बुराई नहीं है, उल्टे यह उदात्त कार्य है। आज हम जिन्हें देखते हैं वे सनकी हैं, और इसी कारण हिंसा है, और समाजका विघटन हो रहा है। हमें सतही दृष्टान्तोंसे अपने आपको चकित नहीं होने देना चाहिए। बढ़इयोंके ऐसे हजारों लड़के हैं जो अपने बापका धन्धा कर रहे हैं, लेकिन ऐसे सौ बढ़ई-पुत्र भी नहीं हैं जो वकालत करते हों। पिछले जमानेमें दूसरोंके धन्धों में दखल देने और धन-संग्रह करनेकी महत्वाकांक्षा लोगों में नहीं थी। उदाहरण के लिए, सिसेरोके जमाने में वकालतका धन्धा अवैतनिक धन्धा था। अगर घनके लिए नहीं