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परिशिष्ट

लगाना किसी दृष्टिसे उचित है? लेकिन इसमें भी, मुझे ऐसे अब्राह्मण कार्यकर्त्ता दीजिए जो मेरी शर्तें पूरी करते हों, और मैं वचन देता हूँ कि सारे ब्राह्मण अपनी जगहें खाली कर देंगे। जहाँतक मैं जानता हूँ, इनमेंसे अधिकांश ब्राह्मण काफी आत्मत्याग करके इन जगहों पर काम कर रहे हैं।

वर्णका नियम


प्रश्न : वर्ण धर्मपर आपका जो आग्रह है उसे हम नहीं समझ पाते। क्या आप वर्त्तमान जाति प्रणालीको उचित कह सकते हैं? वर्णकी आपकी व्याख्या क्या है?
उत्तर : वर्णके अर्थ हैं मनुष्यके धन्धे या पेशेके चयनका पूर्व निर्धारण। वर्णका नियम यह है कि प्रत्येक मनुष्य अपनी आजीविका कमानेके लिए अपने बाप-दादोंके पेशेको ही अपनायेगा। प्रत्येक बच्चा स्वभावतः अपने पिताके ढंगपर चलता है, या अपने पिताके पेशेको चुनता है। अतः वर्णं एक प्रकारसे आनुवंशिकताका नियम है। वर्ण कोई ऐसी चीज नहीं है जो हिन्दुओंपर थोप दी गई है, बल्कि जो लोग हिन्दुओं के कल्याणके न्यासी थे, उन लोगोंने हिन्दुओंके लिए इस नियमकी खोज की थी। यह नियम मानव-रचित नहीं है बल्कि प्रकृतिका एक अपरिवर्तनीय नियम है—न्यूटनके गुरुत्वाकर्षण के नियमके समान ही सदा उपस्थित और सदा कार्यरत एक प्रवृत्तिकी उद्घोषणा है। जिस प्रकार खोजसे पहले भी गुरुत्वाकर्षणका अस्तित्व था उसी प्रकार वर्ण-नियमका भी था। इसकी खोज हिन्दुओंने ही सर्वप्रथम की। प्रकृतिके अमुक नियमोंकी खोज करके और उन नियमोंको लागू करके पश्चिमी देशोंके लोगोंने आसानी से अपनी भौतिक सम्पत्ति बढ़ा ली है। इसी प्रकार इस अप्रतिरोध्य सामाजिक प्रवृत्तिकी खोजके जरिये हिन्दू लोग आध्यात्मिकताके क्षेत्रमें वह उपलब्धि प्राप्त कर सके हैं जो संसारका अन्य कोई राष्ट्र नहीं कर सका है।

वर्णका जातिसे कोई वास्ता नहीं है। अस्पृश्यताकी भाँति ही जाति भी हिन्दू धर्म में एक अपवृद्धि है। जिन अपवृद्धियोंपर आज आग्रह किया जाता है वे हिन्दू धर्मका अंग कभी नहीं थीं। लेकिन क्या आपको ईसाई धर्म और इस्लाममें भी इसी प्रकारकी अपवृद्धि नहीं मिलती?

इन अपवृद्धियोंके विरुद्ध जितना मन चाहे उतना संघर्ष कीजिए। वर्णकी खाल ओढ़ कर घूमनेवाले जाति-प्रथाके दानवका नाश कीजिए। वर्णकी इसी विडम्बनाने हिन्दू-धर्म और भारतका पतन किया है। हमारी आर्थिक और आध्यात्मिक दुर्दशाका मुख्य कारण ही यह है कि हमने वर्ण-धर्मका पालन करना बन्द कर दिया है। बेरोजगारी और गरीबीका भी यह एक कारण है, और अस्पृश्यता तथा लोगों द्वारा हिन्दू धर्मको छोड़ने की घटनाओंके लिए यही जिम्मेदार है।

मूल वर्ण-धर्मने पतित होकर आज जो दानवी रूप प्राप्त कर लिया है और जो दानवी प्रथाएँ चल पड़ी हैं, उनसे अवश्य लड़िए, लेकिन मूल वर्ण-धर्मसे मत लड़िए।
प्रश्न : वर्ण कितने हैं?
उत्तर : वर्ण चार हैं, हालांकि स्वयं वर्णमें इस प्रकारका कोई अलोचनीय विभाजन अन्तनिष्ठ नहीं है। निरन्तर प्रयोग और अनुसन्धान करनेके बाद ऋषियोंने इस चार-सूत्री वर्गीकरण अथवा जीविकोपार्जनके चार तरीकोंका निर्धारण किया।