पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 35.pdf/५६४

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
५३६
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

गांधीजी : लेकिन इस प्रश्नपर विचार करते समय क्या आपको उत्तर भारत में ब्राह्मणवादने जो दिशा अपनाई है, उसपर विचार नहीं करना चाहिए? उत्तर भारतमें ब्राह्मणोंका जो भी दर्जा है वह उन्हें अब्राह्मणोंने प्रदान किया है। उसका अपना कोई स्वतन्त्र दर्जा नहीं है। तथ्य तो यह है कि उत्तर और पश्चिम भारत में इस बातका विचार किया ही नहीं जाता कि कोई नेता विशेष ब्राह्मण है अथवा अब्राह्मण है, बल्कि यह देखा जाता है कि वह नेतृत्व कर सकता है या नहीं। पंजाब में लालाजी, जो अब्राह्मण हैं, वहाँके सर्वोच्च नेता हैं। संयुक्त प्रान्त में मालवीयजी हैं जो कि ब्राह्मण हैं। बंगालमें सुरेन्द्रनाथ बनर्जी, जो ब्राह्मण थे, उनका अब्राह्मणों द्वारा भी उतना ही आदर किया जाता था जितना कि ब्राह्मणों द्वारा। गुजरातमें अब्राह्मण पटेल-बन्धुओंका ब्राह्मण भी उतना ही सम्मान करते हैं जितना अब्राह्मण लोग। दक्षिण भारतमें दिखता है कि आपने हिन्दू-धर्मको न केवल दो शिविरोंमें विभाजित कर दिया है बल्कि भारतको ही ब्राह्मणों और अब्राह्मणोंमें विभाजित कर दिया है, और अब्राह्मणोंमें मुसलमान और ईसाई भी शामिल हैं। अब, मैं चाहता हूँ कि आपके मनमें अपने ही उद्देश्यों और आदर्शोंकी एक सुस्पष्ट और ठोस धारणा हो।

अगर यह मान लूँ कि आपका उद्देश्य केवल राजनीतिक है, अर्थात् शक्ति और सत्तावाले स्थानोंपर ब्राह्मणोंके एकाधिकारको नष्ट करना है, तो शायद मैं अब्राह्मण शब्दकी आपकी सर्व संग्राहक परिभाषाको समझ सकता हूँ, हालांकि यहाँ भी मैं बहुतसी कठिनाइयाँ देखता हूँ।

किन्तु यदि आपका उद्देश्य सुधार करना भी है, या धार्मिक और सामाजिक निर्योग्यताओंको समाप्त करना है तो वैसी हालत में अब्राह्मणकी आपकी वह परिभाषा मेरी समझ में नहीं आती जिसमें गैर-हिन्दू भी शामिल माने जाते हों। उदाहरण के लिए अस्पृश्यता या मन्दिर प्रवेशका सवाल है। अच्छी से अच्छी नीयत हो तो भी कोई गैर-हिन्दू इस सवालमें कारगर ढंगसे हस्तक्षेप कैसे कर सकता है? क्या कोई गैर-मुसलमान इस्लाम धर्ममें सुधार करवा सकता है? मुझे भय है कि धर्मके मामले में अहिन्दुओंका प्रत्येक हस्तक्षेप गम्भीर सन्देहकी निगाह से देखा जायेगा।

इसलिए मैं चाहता हूँ कि आप इस सवालको जितना स्पष्ट कर सकें, कर लें। जहाँतक आपकी निर्योग्यताओंका सवाल है, उनके बारेमें कोई सन्देह नहीं हो सकता। वे हैं, और उन्हें दूर करनेके लिए आपको डट कर संघर्ष करना होगा। लेकिन निर्योग्यताओंके बारेमें भी किसी भ्रममें न रहिए। रही बात सत्ता और पदोंकी, तो अगर मेरे वशकी बात होती तो मैं सभी ब्राह्मणोंको जोरदार सलाह देता कि वे उन्हें आपकी खातिर छोड़ दें; लेकिन जब आप खादी सेवामें ब्राह्मणोंके एकाधिकारका आरोप लगाते हैं तब मैं उसे बिल्कुल नहीं समझ पाता। यह सारा आन्दोलन मुख्यतः अब्राह्मण जनताके हितोंके लिए है, एक तरहसे अखिल भारतीय चरखा संघकी कार्यकारिणी के सभी सदस्य अब्राह्मण हैं। दक्षिण भारत में क्या आप ईमानदारी के साथ यह बात कह सकते हैं कि जो ब्राह्मण खादी सेवामें हैं वे उसमें आर्थिक लाभके लिए शामिल हुए हैं? और जहाँतक स्वैच्छिक अवैतनिक सेवाका सवाल है, क्या एकाधिकारका आरोप