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परिशिष्ट
 

परिशिष्ट
ब्राह्मण-अब्राह्मण प्रश्न १[१]
[प्रश्नोत्तरी]

दक्षिण भारतमें गांधीजीकी यात्राके दौरान अनेक स्थानोंपर अब्राह्मण मित्रोंने गांधीजीसे भेंट की और उनके साथ ब्राह्मण-अब्राह्मण समस्याके विभिन्न पहलुओंपर विचार-विमर्श किया। अक्सर विभिन्न स्थानोंपर एक ही जैसे प्रश्न पूछे जाते थे किन्तु उनके उत्तर हर स्थानकी श्रोता मण्डलीकी ग्राह्य शक्तिको देखते हुए संक्षेप या विस्तारसे दिये जाते थे। मैंने उन सब प्रश्नों और उत्तरोंको एक जगह इकट्ठा करके उन्हें एक प्रश्नोत्तरी के रूपमें प्रस्तुत किया है। इसमें तंजौर, चेट्टिनाड, विरुधुनगर और तिन्नेवेल्ली में हुई बातचीत शामिल है। मदुरैमें हुई चर्चाके समय मैं उपस्थित नहीं था, लेकिन मैं समझता हूँ कि इस संकलित चर्चामें वे विषय भी आ जायेंगे जिनपर वहाँ विचार किया गया होगा। इस प्रश्नपर कडुलोर, तंजौर और कोयम्बटूर में सार्वजनिक सभाओंमें जो कुछ कहा गया, उन्हें मैंने छोड़ दिया है क्योंकि उन्हें मैं इन पृष्ठोंमें पहले ही दे चुका हूँ, और उन चर्चाओंको भी मैंने छोड़ दिया है जिनका सार-संक्षेप पहले ही दिया जा चुका है, जैसे कि ऊँच-नीच के सवालपर तिरुपुरमें हुई चर्चा।

महादेव देसाई

प्रश्नको स्पष्ट करों

गांधीजी : मैं चाहता हूँ कि आप अपनी स्थिति मेरे सामने स्पष्ट करें क्योंकि मैं यह सुनना नहीं चाहता कि मैं आपके दृष्टिकोणको समझना नहीं चाहता या उसे सहानुभूति के साथ देखनेसे इनकार करता हूँ। मेरे दिमागपर जो छाप है वह यह है कि इस आन्दोलनका वास्तविक कारण राजनीतिक है।

अब्राह्मण मित्र : यह आन्दोलन अपने राजनीतिक पक्षके प्रतिपादकोंसे भी पुराना है इसका सामाजिक और धार्मिक पक्ष भी है।

एक ईसाई मित्र : जस्टिस पार्टीके उत्थानका कारण यह धारणा है कि ब्राह्मणोंमें एकाधिकारकी मनोवृत्ति है और इसलिए उनपर भरोसा नहीं किया जा सकता। मैं केवल आजके दक्षिण भारतीय ब्राह्मणोंकी बात ही कर रहा हूँ।

[यहाँ बहुत जल्दी-जल्दी सवाल और जवाब हुए। मैं केवल गांधीजीके उत्तरोंका ही सारांश दे रहा हूँ।—महादेव देसाई]

  1. देखिए "भाषण : तंजौर में", १६-९-१९२७।