इनकार करके खुशी-खुशी परिणाम भोगें। आपको मानना चाहिए कि दण्ड विधान सम्बन्धी निर्णय देनेवाले जजका यह कर्त्तव्य होगा कि जो लोग अपने देशके कानूनोंको नहीं मानते, उन्हें दण्डित करे। और इस मामलेमें सविनय अवज्ञाका भी प्रश्न नहीं आता क्योंकि प्रश्नोंका उत्तर न देनेवाले गवाहोंको दण्ड देनेका कानून तो स्वराज्यके बाद भी लागू किया जायेगा।
हृदयसे आपका,
९४, बड़ादेव
बनारस सिटी
- अंग्रेजी (एस॰ एन॰ १३०५८) की फोटो-नकलसे।
३९९. पत्र : एलिजाबेथ नडसेनको
सत्याग्रह आश्रम
साबरमती
३१ जनवरी, १९२८
आपका पत्र मुझे मिला। मैं कोई जल-चिकित्सालय नहीं चला रहा हूँ। मैं कुछ लोगोंको आश्रममें कूनेकी पद्धतिसे स्नान कराता हूँ, बस। यदि आप आ सकती हों तो आश्रम आजाइए। आपके आनेसे खुशी होगी, और आप यहाँ कुछ बहनों तथा पुरुषोंको भी मालिशकी शिक्षा देंगी। अवश्य, आपको रहने-खानेका कोई खर्चा नहीं देना होगा, और आप जितने दिन चाहें ठहर सकेंगी। यहाँ जीवन बहुत सादा है, उससे भी ज्यादा शायद कठोर है, लेकिन मैं जानता हूँ कि उससे आपको कोई फर्क नहीं पड़ता।
हृदयसे आपका,
अडेयार
मद्रास
- अंग्रेजी (एस॰ एन॰ १३०५९) की फोटो-नकलसे।