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३९६. पत्र : सतीशचन्द्र दासगुप्तको

३० जनवरी, १९२८

प्रिय सतीश बाबू,

मुझे अब आपका वक्तव्य मिल गया है और मैंने उसे पढ़ लिया है। यह काफी सही है। मुझे एक या दो चीजोंके बारेमें सन्देह है। आपने इसपर हस्ताक्षर किये हैं। क्या यह मूल प्रति है अथवा यह किसी अखबारको भेजे गये वक्तव्यकी प्रति है। मैं इसे 'यंग इंडिया'में नहीं छापूँगा।

सप्रेम,

बापू

अंग्रेजी (जी॰ एन॰ १५८५) की फोटो-नकलसे।

३९७. पत्र : रमणीकलाल मोदीको

[३० जनवरी, १९२८][१]

चि॰ रमणीकलाल,

यह ठीक है कि छगनलाल अस्वस्थ है; किन्तु मुझे इस बातका पता अभी-अभी तुम्हारे पत्रसे ही चला। कल दोपहर बाद ४ बजे बैठक रखी जा सकती है। मैंने ३ से ४ बजेका समय अनसूयाबहनको दे रखा है। शामको ७-३० बजे भी बैठक रखी जा सकती है। मुझे ऐसा नहीं लगता कि मैं आज नियमावली[२] तैयार करनेका काम हाथमें ले सकूँगा। फिर भी जल्दी करूँगा।

बापू

गुजराती (एस॰ एन॰ १४५७८) की फोटो-नकलसे।

३९८. पत्र : डी॰ एन॰ बनर्जीको

सत्याग्रह आश्रम
साबरमती
३१ जनवरी, १९२८

प्रिय मित्र,

आपका पत्र[३] मिला। यदि आप अपने दिमाग में अहिंसा के बारेमें बिलकुल स्पष्ट हैं तो आपका कर्त्तव्य है कि आप जजके सामने वैसा वक्तव्य दें और गवाही देनेसे

  1. रमणीकलालके ३० जनवरी १९२८ के पत्रके उत्तरमें; उन्होंने गांधीजीसे आश्रम-नियमावलीका मसौदा तैयार कर देने तथा उसपर विचार-विमर्शके लिए ३१ जनवरीको बैठक रखनेका सुझाव दिया था। पत्रोंका यह आदान-प्रदान पत्र वाहकके जरिये इसी दिन हाथों-हाथ हुआ होगा।
  2. नियमावलीके लिए देखिए खण्ड ३६, "सत्याग्रह आश्रम", १४-६-१९२८।
  3. श्री बनर्जीने अपने २३-१-१९२८ के पत्र में गांधीजीसे पूछा था कि उन्हें एक फौजदारीके मामले में गवाही देनी चाहिए या नहीं।