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प्रश्नोत्तर


सत्याग्रही निर्मल भावसे साधना करे, अपने कामका निश्चय करके उसीमें लगा रहे। अगर किसी गलत चीजको भी उसने एक बार निष्ठापूर्वक सत्य मान लिया हो तो वह उसीमें लगा रहे और इसीसे उसकी अनन्य श्रद्धाका मूल्य आँका जायेगा। तुलसीदासने कहा है :

रजत सीप महँ भास जिमि, यथा भानुकर बारि।
जदपि मृषा तिहुं काल सोई, भ्रम न सके कोउ टारि॥

अगर हम जगतको सत्य मानकर चलें तो फिर हम जगतके हितमें ही लगे रहेंगे। इसमें कल्याण है।

प्र॰—मान लीजिए कि "अमुक" राज्यकी स्थिति इस हदतक खराब है कि वहाँ सत्याग्रह करने लायक स्थिति पैदा हो गई है, तो क्या हम वहाँ अपना डेरा डाल सकते हैं?

उ॰—नहीं। बाहर रहकर ही आपको खूब बलवान बनना है।

बाहर रहकर ही अमुक राज्यके जनमतको तैयार करना है। जब आप देखें कि आपमें बल आ गया है और "अमुक" राज्यमें कोई खामी है और वहाँ किसी विभीषणके मिल जानेकी आशा है, तब आप सत्याग्रह-दल लेकर उस राज्यपर चढ़ाई करें। यह चढ़ाई करते हुए भी यह याद रखना चाहिए कि जिस राजाकी खराब नीतिके कारण चढ़ाई की जा रही है, उस राजाके प्रति आप प्रेम रखें। जब यह सब बातें हों तभी वहाँ सत्याग्रह दलकी छावनी पड़ सकती है। इस बीच "अमुक" राज्यके लोगोंको समझा सकते हैं। वहाँसे आनेवाले लोगोंको आप उनकी अधोगतिसे परिचित करायें और उन्हें जाग्रत करें। वहाँ अगर अपना कोई सगा सम्बन्धी हो, और उसके यहाँ विवाह या ऐसा ही कोई दूसरा शुभ कार्य हो तो भी वहाँ कदापि नहीं जाना चाहिए। इस तरह उस राज्यके लोगोंको बहिष्कारके द्वारा शिक्षा दीजिए।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, २९-१-१९२८