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काठियावाड़ राजनीतिक परिषद

और जो बात कपड़ोंके बारेमें है, वहीं भाषा, खुराक इत्यादिके बारेमें भी ठीक है। जैसे हम समयानुसार अन्य प्रान्तकी पोशाककी नकल करें, उसी तरह प्रान्तीय भाषा, वगैरहकी भी करें। अभी तो अंग्रेजी भाषाको मातृभाषासे भी बड़ा स्थान देनेके निरर्थक, अशक्य और घातक प्रयत्नसे ही हमें इतनी थकावट आती है कि हम अपनी मातृभाषाकी अवगणना, जाने-अजाने किया करते हैं। जहाँ ऐसा चलता है, वहां प्रान्तीय भाषाका तो पूछना ही क्या?

[गुजरातीसे]
नवजीवन, २९-१-१९२८

३९२. काठियावाड़ राजनीतिक परिषद

परिषद आरम्भ हुई और समाप्त हो गई। ठक्कर बापाके[१] भाषणके सम्बन्धमें, लोगोंकी उपस्थितिके सम्बन्ध में, स्वागत-समितिके स्वागतके सम्बन्धमें, माननीय राणा साहबकी[२] शिष्टता और सौजन्यके सम्बन्धमें, सम्मेलनमें उनकी उपस्थितिके सम्बन्धमें और उनके द्वारा अतिथियोंको दी गई दावतके सम्बन्धमें मुझे कुछ नहीं कहना है। सेठ देवीदासने स्वागतमें कोई कसर नहीं रहने दी। सेठ उमर हाजी अहमद झवेरीने स्वागत-समितिके अध्यक्षका कार्य भली-भाँति पूरा किया और इस कार्य में अपना पैसा खर्च करनेमें कोई संकोच नहीं किया। भीलों और ढेढ़ोंके गुरुको शोभा देनेवाली गम्भीरता अध्यक्षके भाषण में भी थी। परिषदके प्रस्तावोंमें कोई दोष नहीं था। किन्तु मुझे उनमें कोई रस नहीं आया, क्योंकि उन प्रस्तावोंके पीछे उनपर अमल करने अथवा करवानेका दृढ़ निश्चय और बल नहीं था। मुझे ऐसा लगा कि जिन लोगोंने वे प्रस्ताव पेश किये थे उनमें से अधिकांशने उन्हें पेश करनेमें ही अपने कर्त्तव्य की इति मान ली है। मैं मन ही मन यह समझकर शान्त हो गया कि यह परिषद खादी परिषद नहीं है। तिसपर भी मैंने एक उसीका ध्यान किया और मैंने अपनी हार मान ली। किन्तु इससे खादीके सम्बन्ध में मेरा विश्वास कम नहीं हुआ। इसलिए मैं यहाँ अपना दुखड़ा नहीं रोऊँगा।

मैं तो केवल एक प्रस्तावपर ही लिखना चाहता हूँ। यह प्रस्ताव मेरी कृति है और मुझे जान पड़ता है कि उक्त प्रस्तावकी रूपरेखा तैयार करके और उसे स्वीकृत कराकर मैंने परिषद तथा काठियावाड़की सेवा की है। वह प्रस्ताव इस प्रकार है :[३]

इस प्रस्तावका सम्भव होना सत्यकी उपासनापर ही निर्भर है। मैंने देखा कि एक हदतक अलिखित समझौते के कारण ही यह परिषद पोरबन्दरमें हो सकी थी और

  1. अमृतलाल ठक्कर, परिषदके अध्यक्ष।
  2. पोरबन्दरके शासक।
  3. प्रस्तावके पाठके लिए, देखिए "भाषण : काठियावाड़ राजनीतिक परिषद, पोरबन्दर में", २२-१-१९२८।