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३८९. पत्र : हेमप्रभादेवी दासगुप्तको

सत्याग्रह आश्रम
साबरमती
२८ जनवरी १९२८

प्रिय भगिनि,

आपका खत मीला है।

उर्दू सीखनेकी तो आवश्यकता नहि है। परंतु जो शब्द नवजीवनके समझमें न आवे और जो आश्रममें कोई न समझा सके उस बारेमें यहाँ लीखो। इस तरह अपना हि शब्द कोष बना लेना।

निखिलकी चिंता छोडो। जो प्रार्थनामें विश्वास रखते है उसे किसी प्रकारकी चिता न होना चाहीये। प्रार्थनाका अर्थ एक तो यह है कि हम हमारा सर्वस्व चिंता भी ईश्वरके चरणोंमें प्रतिदिन धर देते हैं। पीछे चिताको कोई स्थान नहीं रहता।

बापुके आशीर्वाद

जी॰ एन॰ १६५४ की फोटो-नकलसे।

३९०. भाषण : गुजरात विद्यापीठमें[१]

२८ जनवरी १९२८

ऐसा नहीं कहा जा सकता कि आज जो विचार व्यक्त किये गये हैं वे मेरे नहीं हैं। कांग्रेसने सदस्यताका शुल्क चार आने रखकर तो सचमुच प्रजातन्त्र ही ला दिया है। किन्तु मताधिकारका प्रयोग सही तौरपर नहीं हुआ। कहनेका तात्पर्य यह नहीं है कि इस योजनाका उद्देश्य स्नातकोंको निकाल बाहर करना है; अथवा यह भी नहीं है कि कार्यसमितिने ठीक ढंगसे काम नहीं किया। आज सबको ऐसा लगने लगा है कि बस, अब हमें असहयोगकी आवश्यकता नहीं है। भले ही कांग्रेस भी इसी आशयका प्रस्ताव पास कर दे; किन्तु उस हालत में भी मुझे तबतक सन्तोष नहीं होगा जबतक कि मेरे आदर्शके अनुरूप स्वराज्य नहीं मिल जाता। इस प्रकार चुनावको प्रथाको एक ओर रखकर यह न्यास (ट्रस्ट) इसलिए बनाया गया है कि वह अवसरवादी न बनकर अपने लक्ष्यकी ओर बढ़ता जाये और यदि उसमें इतनी

  1. गुजरात विद्यापीठका पुनर्गठन करने तथा उसका नया विधान बनानेके लिए विद्यापीठके कुलपति गांधीजोको अध्यक्षता में सोनेटकी एक बैठकका आयोजन किया गया था। इस सम्बन्ध में देखिए खण्ड ३६, "गुजरात विद्यापीठ", २-२-१९२८ भी।