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सन्देश : शिक्षा सम्मेलन, त्रिचनापल्लीको

हमें अपनेको इस धनका न्यासी समझना चाहिए, जिन्हें उसका उपयोग अपने पड़ोसियोंके कल्याणके लिए करना है। एक श्लोक है जिसमें कहा गया है कि जो व्यक्ति बिना यज्ञ किये, अर्थात् बिना दिये भोजन करता है, वह चोर है।[१] यदि ईश्वर हमें शक्ति और धन देता है तो इसलिए देता है कि हम उसका अपने स्वार्थपूर्ण भोग- के लिए नहीं, बल्कि मानवताके कल्याणके लिए उपयोग करें।

मैं आपका ध्यान अस्पृश्यताके सवालकी तरफ भी दिलाना चाहूँगा। आप अम- रावतीपुरके निवासियोंके मनमें तथाकथित अस्पृश्योंके लिए सहृदयताकी भावना है। कोई व्यक्ति किसी परिस्थिति विशेषमें पैदा हुआ है इसलिए उसे अस्पृश्य कहा जाये, यह तो पाप है। इसलिए आप अपना धन उन्हें इस प्रकार दें मानो वे आपके नाते-रिश्तेदार हों, वे वास्तवमें हैं भी -- और अपने धनको उनके कल्याण हेतु खर्च करें।

मैं आपसे निवेदन करूंगा कि आज इस शाम मैंने आपसे जो कुछ कहा है उसे आप भुला न दें, बल्कि अपने मनमें संजोकर रखें और अपनी सामर्थ्य भर उसे कार्यका रूप दें। ईश्वर आपकी सहायता करे ।

[ अंग्रेजीसे ]
हिन्दू, २६-९-१९२७

२१. सन्देश : शिक्षा सम्मेलन, त्रिचनापल्लीको

[२४ सितम्बर, १९२७ से पूर्व ]

[२]

मैं चाहूँगा कि देशके नौजवानोंके ऊपर अध्यापकोंका जो जबर्दस्त प्रभाव है, उसका उपयोग वे उन्हें कमसे-कम केवल खद्दर पहननेके लिए राजी करके उन्हें लाखों क्षुधा-पीड़ित लोगोंके साथ जोड़नेके लिए करें; लेकिन जबतक वे स्वयं उदाहरण न प्रस्तुत करेंगे तबतक इसमें सफल नहीं होंगे।

[ अंग्रेजीसे ]
हिन्दू, २६-९-१९२७
 
  1. १. गोता, ३, १२ ।
  2. २. त्रिचनापल्ली जिला शिक्षा सम्मेलन और जिला शिक्षक संघका ३७ वाँ वार्षिक सम्मेलन २४-९- १९२७ को हुआ था।