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३८६. पत्र : प्रभावतीको

[२७ जनवरी, १९२८ के पश्चात्][१]

चि॰ प्रभावती,

तुमारा खत मीला है। अब बाबुजी[२] अच्छे हो गये होंगे। तुमारे लीये तो मैं क्या कहुँ? मैं लाचार सा बन गया हुँ।

मैं काठीयावाड़में थोड़े दिनके लीये गया था। उस समय मृत्युंजय और विद्यावती दोनों मेरे साथ आये थे। दोनोंका स्वास्थ आजकल तो अच्छा रहता है।

वसंत पंचमीके रोज रामदासका विवाह नीमु बहनके साथ हुआ। बहोत सादगीसे ही कीया गया।

बापुके आशीर्वाद

जी॰ एन॰ ३३४० की फोटो-नकलसे।

३८७. पत्र : चक्रवर्ती राजगोपालाचारीको

सत्याग्रह आश्रम
साबरमती
२८ जनवरी, १९२८

प्रिय सी॰ आर॰,

तुम्हारा पत्र मिला।[३]‌ मैं चाहूँगा कि तुम मेरे बारेमें चिन्ता करना बन्द कर दो। मैं तुम्हें यही आश्वासन दे सकता हूँ कि मैं जान-बूझकर ऐसा कुछ नहीं करूँगा जिससे मेरे स्वास्थ्य को हानि पहुँचे। लेकिन तुम मेरा स्वभाव जानते हो। अगर मैं कुछ समयके लिए भी एक स्थानपर रुक जाऊँ तो मैं आहार-विषयक प्रयोग किये बगैर नहीं रह सकता। तुम यह भी जानते हो कि मेरी तीव्र इच्छा रही है कि मैं पुनः केवल फल और काष्ठफलके आहारपर लौट आऊँ या कर सकूँ तो कमसे-कम दूध-रहित आहार करूँ। अब मैं देखता हूँ कि मैं आसानीसे वैसा कर सकता हूँ, और‌ इसलिए मैंने वही किया है। अब चूंकि उससे मेरा काम चल सकता है इसलिए फिरसे दूध शुरू करना मेरे लिए तबतक कठिन होगा जबतक कि मुझे इत्मीनान न हो जाये कि दूधके बिना काम चलना असम्भव है। मैं तुमसे सिर्फ इतना ही कह सकता हूँ कि मैं कोई चीज हठधर्मीके साथ नहीं करूँगा। डा॰ मुत्तूकी सलाहके अनुसार मैं अपना रक्तचाप नहीं नपवा रहा हूँ, लेकिन मैं खूब पनप रहा हूँ।

  1. रामदास गांधी के विवाहके उल्लेखसे, जो २७ तारीखको सम्पन्न हुआ था।
  2. ब्रजकिशोर प्रसाद, प्रभावतीके पिता।
  3. २३-१-१९२८ का।