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भाषण : साबरमती आश्रममें

हैं और जिन्हें ही मैं अपना सर्वस्व मानता हूँ, वे इस बातकी साक्षी होंगी कि मैंने तुम्हें वही वस्तुएँ दी हैं, जो मेरी हैसियतके मुताबिक हैं।

मेरे लिए 'गीता' रत्नोंकी खान है। तुम्हारे लिए भी वह रत्नोंकी खान बन जाये, जीवन-पथमें 'गीता' तुम्हारी सतत संगिनी रहे, पथ-प्रदर्शिका बनी रहे। 'गीता' तुम्हारा पथ प्रकाशित करे, तुम्हारे प्रयत्नोंको प्रतिष्ठापूर्ण बनाये। भगवान् तुम्हें सेवाके लिए चिरंजीवी बनाये!

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २-२-१९२८

३८५. भाषण : साबरमती आश्रममें[१]

२७ जनवरी, १९२८

शामको गांधीजीने प्रश्नके सार्वजनिक पक्षका उल्लेख किया। उन्होंने उस घातक प्रणालीकी चर्चा की जिसने चार मूल वर्णोंको बहुत सारी जातियों और उपजातियोंमें विभक्त कर दिया है, और आशा व्यक्त की कि आश्रमके अन्दर एक ही जातिके दो व्यक्तियोंके बीच होनेवाला यह विवाह[२] अन्तिम होगा। उन्होंने कहा, आश्रमके लोगों को उचित है कि वे इस मामलेमें पहल करें, क्योंकि बाहर के लोगोंको इस सुधारका आरम्भ करना कठिन मालूम हो सकता है। आश्रम के लिए नियम यह होना चाहिए कि एक ही जातिके स्त्री-पुरुष के विवाहका समर्थन न किया जाये और विभिन्न उपजातियोंके स्त्री-पुरुषोंके बीच विवाहको प्रोत्साहन दिया जाये। उन्होंने कहा, मैं तो चाहूँगा कि लड़कियोंको २० वर्षतक, बल्कि २५ वर्षकी आयुतक अविवाहित रखा जाये। अपने प्रवचन के अन्तमें उन्होंने विवाहको गम्भीर महत्तापर फिर जोर दिया।

ऐसा मत सोचिए कि आश्रमका उद्देश्य विवाहको लोकप्रिय बनाना है। उसका उद्देश्य आजीवन ब्रह्मचर्यको बढ़ावा देना है और रहेगा। यह विवाहका समर्थन उसी हदतक करता है जिस हृदतक कि उसका उपयोग भोग नहीं, बल्कि संयमके एक साधनके रूपमें किया जाता है। और जो लोग संयमित जीवनके पक्षमें हैं उन्हें अपना जीवन उन लोगोंसे भिन्न आधारपर नियोजित करना चाहिए जो भोगपूर्ण जीवनके पक्षपाती हैं। याद रखिए कि स्वच्छन्द भोग-लिप्साकी सदा एक सीमा होती है जबकि आत्म संयमकी कोई सीमा नहीं है, और हमें नित्यप्रति उसी दिशामें आगे बढ़ना चाहिए।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २-२-१९२८
  1. महादेव देसाई द्वारा लिखित "द वीक" (यह सप्ताह) शीर्षक लेखसे।
  2. देखिए पिछला शीर्षक।