पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 35.pdf/५४६

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

 

३८४. भाषण : रामदास गांधीके विवाहके अवसरपर[१]

साबरमती
२७ जनवरी, १९२८

ठीक साढ़े नौ बजे प्रार्थना स्थलमें सभी एकत्र हो गये और गांधीजीने अपने छोटे-से भाषण में वर-वधूको आशीर्वाद दिया। भाषण उतना ही पवित्र था जितना कि उसका प्रसंग। वह गांधीजीके जीवनका एक अत्यन्त मार्मिक क्षण था। उपस्थित सज्जनोंने देखा कि ऐसे अवसरोंपर गांधीजीका हृदय भी उतना ही भावप्रवण हो सकता है जितना कि किसी भी अन्य व्यक्तिका। अपने ही हाथों पाले-पोसे और अपनी ही देख-रेख में विकसित होनेवाले अपने दो पुत्रों—रामदास और देवदास—का उल्लेख करते-करते उनकी आँखोंसे आँसू छलछला आये थे। इस ज्ञानसे कि उनके इस लड़के ने उन्हें कभी नहीं ठगा, अपनी भूलें, अपनी त्रुटियाँ कभी नहीं छिपाई, गर्वसे उनकी छाती फूल उठी, स्वर गद्ग्द् हो आया।

तुमने अपने दोष मेरे सामने कबूल किये हैं, मगर मैं उनसे कभी शंकित नहीं हुआ, क्योंकि तुम्हारी स्पष्ट स्वीकारोक्तिने मेरी आँखोंमें तुम्हारे दोष धो दिये हैं। मुझे इसका हर्ष है कि तुम्हें सारी दुनिया भले ही ठगे, पर तुम किसीको ठगनेवाले नहीं हो। मैं चाहता हूँ कि तुम ऐसे ही भोले, ऐसे ही सच्चे बने रहो।

तुम अपनी पत्नीकी आबरूकी रक्षा करना और उसके मालिक मत बन बैठना, उसके सच्चे मित्र बनना। उसके शरीर और आत्माको तुम वैसे ही पवित्र मानना, जैसे कि वह तुम्हारे शरीर-आत्माको मानेगी। इसके लिए तुम्हें प्रार्थनामय, परिश्रमशील, सादा और संयत जीवन बिताना पड़ेगा। तुम लोग परस्पर एक-दूसरेको विषय-वासनाकी पूर्तिके साधन मत मान बैठना।

तुम दोनोंको ही यहाँ शिक्षा मिली है। तुम अपना जीवन मातृभूमिको सेवामें लगा देना। मातृभूमिकी सेवामें अपने शरीरको खपा देना। हमने गरीबीका व्रत लिया है। इसलिए तुम दोनों ही गरीबोंके समान खून-पसीनेकी ही रोटी खाना। तुम दोनों परस्पर एक-दूसरेको दैनिक काममें सहायता देना, उसीमें आनन्द मानना।

मैंने तुम्हें कोई उपहार नहीं दिया है। तकली और मेरे प्रिय ग्रन्थ 'गीता' और 'आश्रम-मजनावलि' की प्रतियोंके सिवाय मैं तुम्हें और कुछ दे भी नहीं सकता हूँ। सूतकी ये मालाएँ ही तुम्हारे लिए रक्षा कवच बनें। मैं चाहता तो मित्रोंसे भीख माँगकर तुम्हें कीमती चीजें भी भेंट कर सकता था, मगर उसमें तो संसार मेरे मिथ्या दम्भकी खिल्ली ही उड़ाता और ठीक भी था। मगर मैंने जो चीजें तुम्हें दी

  1. महादेव देसाईके "द वीक" (यह सप्ताह) से; उसमें इस भाषणका विवरण "ए सॉलेमन सेरेमनी" (एक पवित्र संस्कार) उप-शीर्षकके अन्तर्गत दिया था।