पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 35.pdf/५४४

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
५१६
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हूँ, वह भी उसी तरह केवल हँसेंगे। जिस गैर-जिम्मेदारीके बारेमें मैंने 'यंग इंडिया' के पृष्ठोंमें लिखा है,[१] यह उसका एक और ज्वलंत उदाहरण है।

सप्रेम,

हृदयसे आपका,
बापू

[पुनवच :]

आपका लेख अभीतक हाथमें नहीं आया है।[२] मुझे अब आपका दूसरा पत्र मिल गया है। मैं कैप्टेन पेटावलको सूचित कर रहा हूँ। मैं आशा करता हूँ कि मेमनसिंहकी आपकी यात्रा सफल रही और आपको उसकी वजहसे कोई असुविधा नहीं हुई।

अंग्रेजी (जी॰ एन॰ १५८३) की फोटो-नकलसे।

३८२. पत्र : बी॰ एस॰ मुंजेको[३]

सत्याग्रह आश्रम
साबरमती
२७ जनवरी, १९२८

प्रिय डा॰ मुंजे,

आपने मुझे पत्र लिखनेमें बड़ी विचारशीलताका परिचय दिया है। मैं भी आपके सामान्य प्रस्तावसे सहमत होऊँगा। लेकिन क्या इस चीजको केवल मुसलमानोंपर लागू कर सकते हैं या क्या इस सुधारका आरम्भ उन्हींके साथ कर सकते हैं? क्या हमारे देशमें बहुत-सी विशुद्ध हिन्दू संस्थाएँ नहीं हैं? फिर, इस मुस्लिम विश्वविद्यालय में हिन्दुओंके प्रवेशपर कोई रोक नहीं है। तथ्य तो यह है कि पहले ही इस विश्वविद्यालयसे निकले हुए ऐसे हिन्दू स्नातक हैं जो आज अच्छी राष्ट्र-सेवा कर रहे हैं। अभी भी उसमें कुछ हिन्दू पढ़ रहे हैं। तीसरे, यदि किसी संस्थाका दृष्टिकोण

  1. देखिए "राष्ट्रीय कांग्रेस", ५-१-१९२८।
  2. इस पत्रपर ए॰ सुब्वैयाकी यह टिप्पणी है : "ऊपरका नोट लिखे जानेके बाद बापूजीको लेख दे दिया गया।"
  3. डा॰ मुंजेने १८ जनवरीके अपने पत्रमें जामिया मिलियाके कोषके सन्दर्भमें लिखा था कि इस प्रकारको साम्प्रदायिक संस्थाएँ सम्प्रदायोंकी पृथकता के लिए मुख्य रूपसे जिम्मेदार हैं जिसका अन्ततः परिणाम हिन्दू-मुस्लिम तनाव होता है। उन्होंने आगे लिखा था : "मैं अपने आदरणीय और प्रिय हकीमजीके स्मारकके लिए किसी भी राष्ट्रीय योजनायें साथ दूँगा।. . .और ऐसा ही स्मारक स्वर्गीय स्वामी श्रद्धानन्दका भी हो।. . .लेकिन इससे बेहतर है कि दोनोंका एक समान स्मारक बनाया जाये जो दुनियाके सामने इस बात की घोषणा करेगा कि हिन्दू और मुसलमानोंने. . .हार्दिक एकता स्थापित करनेका संकल्प किया है. . ." (एस॰ एन॰ १२३९४)।