पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 35.pdf/५४३

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

 

३८०. पत्र : राजेन्द्रप्रसाद मिश्रको

सत्याग्रह आश्रम
साबरमती
२६ जनवरी, १९२८

भाई राजेन्द्रप्रसादजी मिश्र,

आपका सुपुत्र मेरे पास आ गया है और कहता है कि यद्यपि वह और उसकी धर्मपत्नी पड़दा छोड़ना चाहते हैं, आप उसका विरोध करते हैं। अपना धर्म कया है मुझको पूछता है। मैंने कहा है आपकी आज्ञाका आज तो पालन करे और पत्लिके लीये एक शिक्षिका रखे। शिक्षिका यहाँसे भेजी जा सकती है। मेरी तो आपको सलाह है की आप दंपतिको अपनि इच्छानुसार चलने दें। इस युगमें पड़दा निभ नहि सकता है न आवश्यक है। प्राचीन समयमें पड़दाकी बूरी प्रथा न थी।

आपका,
मोहनदास गांधी

जी॰ एन॰ ८०२५ की फोटो-नकलसे।

३८१. पत्र : सतीशचन्द्र दासगुप्तको

सत्याग्रह आश्रम
साबरमती
२७ जनवरी, १९२८

प्रिय सतीश बाबू,

इन क्षमादानोंमें आप जो दिलचस्पी ले रहे हैं और जो निष्कर्ष आप निकाल रहे हैं उन्हें मैं देख रहा हूँ। इस समय जब कि हम हर चीजके लिए सरकारपर निर्भर कर रहे हैं, ये अवश्यम्भावी प्रतीत होते हैं।

मुझे आपका लेख अमीतक नहीं मिला है, लेकिन इस पत्रके डाकमें छोड़े जानेसे पहले मैं उसे प्राप्त करके पढ़ लेनेकी आशा करता हूँ। यदि किसी चीजकी आलोचना होनी है तो आलोचना इस पत्रके साथ ही जायेगी।

'फॉरवर्ड' की कतरन बहुत दिलचस्प है और पढ़कर थोड़ा दुख होता है। मैंने लाला दुनीचन्दका मूल लेख पढ़ा था। यदि लाला दुनीचन्द 'फॉरवर्ड' में छपी सुर्खियाँ पढ़ेंगे, तो वह या तो हँसेंगे या रोएँगे। मैं आशा करता हूँ कि जिस प्रकार मैं हँसा