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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सरकारको कोई ज्यादा परेशानी नहीं होगी, इसलिए ब्रिटिश सरकारपर प्रभाव डालनेकी नीयत से ऐसा बहिष्कार करना बिलकुल बेकार है। यह भी नहीं भूलना चाहिए कि इन इतने वर्षोंमें भी हमारे यहाँ विशेषज्ञोंका कोई ऐसा दल खड़ा नहीं हो सका है जो एक इसी कामपर ध्यान दे। आजकल तो कहीं-कहीं यह अलग चलन-सा बन गया है कि कांग्रेस द्वारा स्वीकृत हर प्रस्तावकी असफलताका दोष मेरे ही मत्थे मढ़ दिया जाता है। मुझसे कहा जाता है कि फलाँ प्रस्ताव तो इसीलिए असफल हुआ कि आपने उसका विरोध कर दिया था या फलाँके लिए तो आपने कुछ काम ही नहीं किया। किसी राष्ट्रके लिए इससे बड़ी जलालत और क्या हो सकती है कि वह इस प्रकार असहाय बना रहे। बेशक, दक्षिण आफ्रिकासे मेरे लौटने के पहले ही यहाँ भारत में ब्रिटिश मालके बहिष्कारका खयाल लोगोंको सूझ गया था और उसकी जोरोंसे वकालतकी गई थी। ब्रिटिश मालके बहिष्कारके प्रस्तावकी असफलताका सच्चा और अधिक स्वाभाविक कारण तो यह प्रत्यक्ष तथ्य है कि अबतक इस विषयके विशेषज्ञोंकी कोई भी समिति इसे पूरा करनेकी कोई योजना निश्चित नहीं कर सकी। कहा जाता है कि अगर चीनको इसमें सफलता मिली थी तो हिन्दुस्तानको क्यों नहीं मिल सकती? हाँ, बहिष्कार हम भी जरूर कर सकते हैं, मगर कब? जब क्रान्तिकारियोंकी फौज खड़ी करके और इसी प्रयोजनके लिए ब्रिटिश माल चढ़ाने-उतारनेसे सम्बन्धित सभी गोदी मजदूरों आदिकी हड़ताल कराके अपनी सशस्त्र शक्तिके बलपर बहिष्कारको सुनिश्चित बनानेका अवसर हमें मिले और हमारे अन्दर ऐसी इच्छा और अपेक्षित साहस मौजूद हो। मुझे लगता है कि इसकी हमें अगर इच्छा हो तो भी ऐसी खुली और सशस्त्र क्रान्ति करनेके लिए न तो हमारे पास साधन हैं और न उसे चलानेकी क्षमता ही। फिर न तो बहिष्कारका समर्थन करनेवालोंने और न सविनय अवज्ञा जाँच समिति द्वारा नियुक्त विशेष समितिने ही कभी सशस्त्र शक्तिके प्रयोगका विचार किया है। इसलिए मैं कहता हूँ कि यह राष्ट्रके गौरव, प्रतिष्ठा और कल्याणके कहीं अधिक हितमें होगा कि हम ब्रिटिश मालके बहिष्कारके इस निष्फल और लगभग असम्भव नारेको छोड़ दें। हाँ, यहाँ देशमें जो चीजें बन सकती हैं, उन सबके बारेमें सच्ची स्वदेशी भावनाके प्रचारकी स्थायी आवश्यकताको मैं बिलकुल मानता हूँ। दण्डस्वरूप अपनाये जानेवाले इस बहिष्कारके विरुद्ध दी गई दलीलें इसपर लागू नहीं होतीं।

मगर निराश होनेकी कोई वजह नहीं है। हमारे ऊपर ये जो निरन्तर एकके बाद दूसरे अन्याय थोपे जा रहे हैं, उनके प्रति अपना क्रोध व्यक्त करनेका ऐसा बना बनाया साधन हमारे पास मौजूद है जो सबसे अधिक प्रभावशाली है। मेरा दावा है कि अगर हम चाहें तो ब्रिटिश ही नहीं बल्कि सभी प्रकारके विदेशी कपड़ोंका पूर्ण बहिष्कार करनेकी शक्ति हममें है। अगर हम यह बहिष्कार करें तो हमें न सिर्फ अपना क्रोध ही प्रदर्शित करनेमें सफलता मिलेगी किन्तु हम जनताकी एक ऐसी सेवा करेंगे जैसी पहले कभी नहीं की, और एक राष्ट्रीय कार्यमें हम उनका सहयोग भी प्राप्त करेंगे। इस कामको करनेके लिए हमारे पास कार्यकर्त्ताओंकी एक सेना भी खड़ी है