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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सम्मानी व्यक्ति बनना चाहते हैं तो यह देखना आपका कर्त्तव्य है कि प्रत्येक व्यक्ति- को ईमानदारीका काम मिले और हर स्त्री या पुरुष जो काम करे उसका उसको ईमानदारीसे पारिश्रमिक प्राप्त हो ।

और मैं पिछली रात कही गई अपनी यह बात भी दुहराना चाहूँगा कि धन- वान लोगोंको बराबर यह याद दिलाते रहना जरूरी है कि आखिरकार वैयक्तिक जीवनमें पवित्रता संसारका सबसे बड़ा धन है। मैं मानता हूँ कि लगातार गलत काम करनेवालोंके लिए धन कितना बड़ा प्रलोभन प्रस्तुत करता है। इसलिए मैं चाहूँगा स्वयं अपना आत्मनिरीक्षण करनेके खयालसे आपमें से हरएक व्यक्तिगत तौर पर अपना निरीक्षण करे और आपके अन्दर जो भी बुराइयाँ हैं, उनको नष्ट कर डाले। अमरावतीके शाब्दिक अर्थ हैं देवताओंकी नगरी। मैं कितना चाहता हूँ कि आप अपने शहरको सचमुच देवोंका आवास बना डालें। यदि अन्दर और बाहरकी सफाई कर डालें तो आप आसानीसे ऐसा कर सकते हैं। यदि हम अपने मनमें ईमानदारीसे सोचें तो हममें से हर एक देख सकेगा कि स्वराज्यकी भाँति ही स्वच्छता भी हमारा जन्म- सिद्ध अधिकार है। स्वराज्यकी ओर जानेवाला पथ आत्मसंयमका पथ है। और आत्म- संयमका अर्थ है व्यक्तिगत स्वच्छता ।

लेकिन चेट्टिनाडमें रहते हुए मैंने देखा है कि जहाँतक बाह्य सामूहिक स्वच्छता- का सवाल है, उसका यहाँ वास्तवमें अभाव है। अगर आप सब मिलजुलकर प्रयत्न करें तो आप अपनी सड़कें, अपने तालाब और अपने आसपासके स्थान बिलकुल स्वच्छ बना सकते हैं और मेरे पास चेट्टिनाडके मित्रोंके पत्र हैं जिनमें मुझे बताया गया है कि यहाँ कोई खास आन्तरिक स्वच्छता भी नहीं है। यह आन्तरिक अस्वच्छता तो उस अस्वच्छतासे भी खराब है जो मैं यहाँ सड़कों और तालाबोंमें देखता हूँ। अगर आप अपनेको संगठित कर लें, स्वयंसेवकों और कार्यकर्ताओंका एक दल आपके पास हो और आप अपनी सड़कों और अपने तालाबोंको खूब स्वच्छ कर डालें तो यह बाह्य गन्दगी और अस्वच्छता तो दूर की ही जा सकती है। सामूहिक या शहरी जिन्दगी- की पहली शर्त है कि नगरके लोगोंको बिलकुल स्वच्छ पानी मिलनेकी गारंटी हो और जहाँ पानी जमा किया जाता है वह जगह बिलकुल साफ और सुन्दर हो । नन्दी हिलपर मैंने देखा कि उन पहाड़ियोंपर रहनेवाले लोग जिस तालाबसे पीने का पानी लेते थे उसे गन्दगीसे बचानेके लिए उसकी दिनभर ठीक निगरानी रखी जाती थी। जिन तालाबोंसे पीनेका पानी लिया जाता है, कपड़े धोने, नहानेके तालाब उनसे अलग होने चाहिए। मैं जानता हूँ कि मैंने जिस आन्तरिक स्वच्छताकी बात अभी की वह कहीं ज्यादा कठिन और जटिल समस्या है, और बाह्य स्वच्छतासे उसका कोई मुकाबला नहीं है। लेकिन एक जमाना था जब खुद मेरे पास कुछ घन हुआ करता था, और इसलिए मैं आपको अपना निजी नुस्खा दे सकता हूँ कि किस प्रकार आप धनी होनेपर भी आन्तरिक स्वच्छता प्राप्त कर सकते हैं। जो नुस्खा मैं आपको बताने जा रहा हूँ वह कोई मौलिक नुस्खा नहीं है। यह तो वास्तवमें हमारे धर्मका एक अंग है। वह यह है कि चाहे हमने कितना भी धन अर्जित किया हो,